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भाषण : पटनामें

तो वह उस कारण अपने पिताके अपराधमें भागीदार बन जाता है और कोई भी धर्म ऐसी साझेदारीकी, चाहे वह पिता और उसके पुत्रके बीच ही क्यों नहो, अनुमति नहीं देता। ईश्वरका यह स्पष्ट और अनिवार्य आदेश है कि यदि किसीके निकटतम और प्रियजन पापरत हों तो वह उनसे सहयोग करना बन्द कर दे।

इसलिए विश्वविद्यालयका पहला कार्य असहयोगके आदर्शकी शिक्षा देना और उसके मूलभूत सिद्धान्त, पूर्ण अहिंसा, पर जोर देना होगा। इसके बाद गांधीजीने कलकत्तामें छात्रों द्वारा दिये गये धरनेका और अपने उन मित्रोंपर जो उनके साथ सम्मिलित नहीं होना चाहते थे, डाले गये अन्य दबावोंका उल्लेख किया। उन्होंने कहा : मुझे श्री शास्त्री[१] और परांजपेके[२] साथ बम्बईमें किये गये व्यवहारकी बात सुन कर बहुत दुःख हुआ है। मैं आपसे कहना चाहताहूँ कि ये लोग सचमुच ही सच्चे देशभक्त हैं। यदि ये व्यक्ति भारतके शत्रु हैं तो मैं उसका मित्र कैसे हुआ? उन लोगोंका आन्तरिक विश्वास है कि सरकारसे सहयोग करके देशका हित सधेगा और गांधी देशको गलत रास्तेपर ले जा रहा है। ऐसे मतभेद तो अवश्य ही होते रहेंगे; लेकिन उनका आशय यह कभी नहीं हो सकता कि ये लोग देशभक्त नहीं——देशके शत्रु हैं। उनके प्रति शर्म-शर्मके नारे लगाना और उनकी आदरपूर्वक बात न सुनना छात्रोंका कर्त्तव्य नहीं है। यदि छात्र उनकी सलाहको सम्मानपूर्वक और ध्यानसे सुनते तो ऐसा करना भारतकी प्राचीन संस्कृतिके अनुरूप होता। सभाओंमें विघ्न उपस्थित करना, शोर मचाकर वक्ताओंको बैठा देना, उनपर पत्थर तक फेंकना अंग्रेज लोगोंका रिवाज है। श्री लॉयर्ड जॉर्ज और श्री चर्चिलको[३] शोर मचाकर और पत्थर फेंककर बैठा दिया गया था। लेकिन यह स्वभाव भारतकी संस्कृति और सभ्यताके विपरीत है और यदि आप असहयोगको वस्तुतः सच्चे हृदयसे चलाना और सफल बनाना चाहते हैं तो आपको यह छोड़ना पड़ेगा। "शर्म-शर्म"के नारोंसे लोग कभी मित्र नहीं बन सकते और न हमारे विरोधी हमारे समर्थक हो सकते हैं। यदि हम उनसे प्रेम करें और आदरपूर्वक बरतें तो हम कभी-न-कभी उनको मित्र बना सकते हैं।

मुझे आशा है कि विश्वविद्यालय अपनी शक्तिका उपयोग केवल हमारे साहित्यिक ज्ञानकी वृद्धिमें ही नहीं करेगा; उसका मुख्य कर्त्तव्य तो युवकोंके मस्तिष्कोंमें हमारी सभ्यताके सिद्धान्तोंको बद्धमूल करना और उनमें स्वतन्त्रताकी सच्ची और उत्कट आकांक्षा

  1. श्रीनिवास शास्त्री।
  2. रैंगलर रघुनाथ पुरुषोत्तम परांजपे (१८७६-१९६६); शिक्षा-शास्त्री; उदारदलीय राजनीतिश; पूनाके फर्ग्युसन कालेजके प्रिंसिपल; बम्बई सरकारमें शिक्षा मन्त्री (१९२२-२३), इंडिया कौंसिलके सदस्य; १९४४ में आस्ट्रेलियामें भारतके हाई कमिश्नर।
  3. सर विन्स्टन लियोनार्ड स्पेंसर चर्चिल (१८७४-१९६५); अंग्रेज राजनीयक और ग्रन्थकार, उपनिवेश उपमन्त्री, १९०५-८; युद्ध सामग्री-मन्त्री, १९१७, युद्ध-मन्त्री, १९१८-२१; प्रधान मन्त्री, १९४०-४५, ५१-५५; १९५३ में साहित्यपर नोबेल पुरस्कार दिया गया।