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११. अहिंसाकी एक विजय

शस्त्र-त्याग कहें, दया-धर्म कहें, शान्ति कहें, अमन कहें अथवा अहिंसा――अर्थ इन सबका एक ही है। इस शक्तिकी विजय हुई है, यह बात सरकारके अन्तिम प्रस्तावसे[१]सिद्ध हो गई है। सरकारने फिलहाल कुछ समयके लिए अली भाइयों[२]और मुझे कैदमें न रखनेका निश्चय किया है। उसने इस शान्तिपूर्ण असहयोगपर फिलहाल बुद्धिबलसे, नरम दलकी मददसे विजय पानेका निश्चय किया है। इस निश्चयके लिए राजा व प्रजा दोनों परस्पर एक दूसरेको बधाई दे सकते हैं। मैं इसे शान्तिमय युद्ध अर्थात् अहिंसाकी विजय समझता हूँ। यदि हमने छिपे अथवा प्रकट रूपसे खून करके, मकान जलाकर अथवा रेलकी पटरी उखाड़कर संघर्ष चलानेका विचार किया होता तो हम जन-मानसको कदापि प्रशिक्षित न कर पाते, हममें साहसपूर्वक सत्य बोलनेकी शक्ति न आ पाती; अर्थात् हम स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए तैयार अथवा योग्य न हो पाते। आज हम जितनी स्वतन्त्रतासे अपने विचारोंको अभिव्यक्त करते हैं उतनी स्वतन्त्रतासे एक वर्ष पूर्व नहीं कर सकते थे। हमने सरकारको अभयदान देकर स्वयं अपने लिए साहस जुटा लिया है। हमारे मनमें इस विश्वासने घर कर लिया है कि चूंकि हममें मलिनता नहीं है इसलिए हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। हमें सहज ही इस सत्यकी अनुभूति हो गई है कि यदि हम किसीको मारना नहीं चाहते तो हमें भी कोई क्यों मारेगा।

इस तरह वातावरण साफ हो गया है। हम अपने हृदयबलसे, बुद्धिबलसे जनमतको बदलकर स्वराज्य प्राप्त करना चाहते हैं, इसलिए सरकारके लिए भी सोच-समझ से काम लेना जरूरी हो गया है। अपने विरोधीसे डरकर जब हम उसीकी तरह मलिन बलका उपयोग करते हैं तभी हम मलिनता सीखते हैं और दुर्बल बनते हैं। इससे दोनों पक्ष कमजोर होते हैं। यदि मलिनताके विरुद्ध हम स्वच्छताका प्रयोग करें तो अन्ततः मलिनता कम हो जाती है और इससे उस हदतक जनता और जगत सुखी होता है। इस तरह शान्तिकी, अमनकी सदा जय ही होती है। सरकारका प्रस्ताव इस विजयका एक बड़ा उदाहरण है।

  1. सन् १९२० के नवम्बर मासके प्रारम्भमें प्रकाशित किये गये इस संकल्पमें अन्य बातोंके अलावा वह कहा गया था कि सरकारने अबतक ऐसे लोगों के खिलाफ फौजदारी या अन्य प्रकारकी कार्रवाई नहीं की है जिन्होंने असहयोगके साथ-साथ अहिंसाका भी प्रचार किया है और उसने स्थानीय सरकारोंको केवल उन्हीं लोगों के खिलाफ कार्रवाई करनेकी हिदायत दी है जिन्होंने अपने लेखन था भाषणसे जनताको हिंसाके लिए भड़काया है। इसके अलावा उक्त संकल्पमें यह भी कहा गया था कि सरकार वाणीकी स्वतन्त्रता और अखबारोंकी आजादीमें हस्तक्षेप करनेसे बचती रही है। इंडिया इन १९२०।
  2. मौलाना मुहम्मद अली (१८७१-१९३१) और शौकत अली (१८७३-१९३८); राष्ट्रीय मुस्लिम, राजनीतिज्ञ, खिलाफत आन्दोलनके प्रमुख नेता। मुहम्मद अली १९२० में इंग्लैंड जानेवाले शिष्टमण्डलके नेता और १९२३ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष थे।