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तार : शौकत अलीको


जनताकी प्रशंसनीय भावना या नगरपालिकाके रुखके औचित्यके विषयमें किसीको आपत्ति नहीं हो सकती। यह ठीक है कि सरकार चाहे और उसमें हिम्मत हो, तो वह नगरपालिकाको भंग कर सकती है। किन्तु यदि करदाता अपने बच्चोंकी शिक्षापर सरकारका नियंत्रण न रहने देनेका दृढ़ निश्चय कर चुके हैं तो उसे इस प्रकार भंग करना भी व्यर्थ होगा। यह छोटे पैमानेपर एक शान्तिपूर्ण क्रान्ति है। आन्दोलनकी सफलताका कारण है जनताकी एकता तथा अपने बच्चोंकी शिक्षाका प्रबन्ध करने और उसके लिए पैसा जुटानेकी उसकी योग्यता। हिंसाका परित्याग करके नड़ियादके निवासी अपने बच्चोंको स्वराज्यकी शिक्षा देनेमें समर्थ हो रहे हैं। बच्चोंकी शिक्षाके सम्बन्धमें जो बात इस नगरपालिकाके लिए सच है समस्त भारतवर्षके लिए वही सब विषयोंमें सच है।

जब जनताका मन एक हो, जब उसमें प्रबन्ध करनेकी योग्यता हो और उसे अहिंसाको आवश्यकताकी प्रतीति हो जाये——ऐसा चाहे व्यावहारिकताके नाते ही क्यों न है——तब समझना चाहिए कि स्वराज्य मिल गया। पैसेके प्रबन्धका प्रश्न कोई बड़ा प्रश्न नहीं है। क्योंकि सरकार भी पैसा आसमानसे नहीं लाती। गुजरातीकी एक व्यंजनापूर्ण कहावतको दूसरे शब्दोंमें कहें, तो वह निहाईके वजनकी धातु लेकर सुईके वजनकी धातु देती है। और इसमें दुःख और लज्जाकी बात तो यह है कि यह कृपण दान देकर भी वह राष्ट्रके सुकुमार मनपर बन्धन डाल कर उसे तेजोहीन बनाती रहती है। यदि हम आत्मप्रवंचनाके शिकार न होते, तो हम कमसे-कम अपने बच्चोंके नाशमें सहायक बननेसे तो अवश्य इनकार करते। नडियादकी नगरपालिकाने दिखा दिया है कि शिक्षाको राष्ट्रीय रूप देनेकी समूची प्रक्रिया कितनी सरल है। लाला दौलतरामके लेखोंने दिखा दिया है कि अर्थका प्रश्न कितना सरल है, और यह भी कि साधारण फीस ही हमारी सब शैक्षणिक संस्थाओंको चलानेके लिए लगभग काफी है। मैं आशा करता हूँ कि नडियादकी नगरपालिका द्वारा प्रस्तुत इस वस्तु-पाठसे ऐसी ही स्थितिकी अन्य नगरपालिकाएँ लाभ उठायेंगी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ९–२–१९२१

१६८. तार : शौकत अलीको

९ फरवरी, १९२१

कृपया बम्बईके छात्रों द्वारा शास्त्री कानजीके[१] प्रति किये गये व्यवहारका विवरण तार द्वारा बनारस[२] भेजें। हमें इस प्रकारके काण्डोंको रोकना चाहिए और उनसे अपनेको अलग रखना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्स, १९२१, पृष्ठ १५७।

  1. कानजी द्वारकादास, बम्बईके एक सार्वजनिक कार्यकर्त्ता।
  2. गांधीजी ९ और १० फरवरीको बनारसमें थे।