१६९. भाषण : बनारसमें[१]
९ फरवरी, १९२१
भाइयो,
हम दोनों भाई, मुहम्मद अली और में आज आपके पास आये हैं। आप लोग यहाँ विद्यापीठको स्थापना करेंगे। हम लोग उसीमें शरीक होने आये हैं। हमारे भाई अबुल कलाम आजाद भी इसीलिए यहाँ पहुँचे हैं। मैं आपका यह समय दूसरे काममें नहीं लगाऊँगा। मैं आप लोगोंसे केवल इतना ही कह देना चाहता हूँ कि हम लोगोंकी शक्ति दिनपर-दिन बढ़ती जा रही है। इसके साथ-साथ हम लोगोंकी जिम्मेदारी भी बढ़ती जा रही है और साथ ही साथ भय भी बढ़ता जा रहा है। हम लोगोंको यह स्थिर करना है कि किस तरह काम करना चाहिए। यदि हमारी शक्ति जानकर हम आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमें समझ लेना चाहिए कि यह शक्ति बढ़ी कैसे। इसका एकमात्र कारण यही है कि हम लोग शान्तिसे काम करते हैं। भाई शौकत अली कहा करते हैं कि हम लोगोंकी ताकतकी वृद्धिका कारण ठंडी हिम्मत है। यदि हम लोग क्रोध या आवेशमें आकर तलवार उठा लें तो उससे अपना गला काटेंगे या अंग्रेजका? इससे हमारी ही ताकत कम होगी। यह ठंडी हिम्मत और अमनकी लड़ाई है। इसके लिए सब तैयार हो जायें। यदि इसमें हमने तलवार उठाकर अंग्रेजका या अपने भाईका गला काटा तो हमारा पतन हो जायेगा। फैजाबादके किसानोंने क्या किया? मदोन्मत्त होकर उन्होंने दुकानें लूटीं, अपने भाइयोंका माल लूटा।[२] वहाँ हमारी शक्तिका पतन हो गया। सल्तनत देख रही है कि हम लोगोंने इतना भारी आन्दोलन आरम्भ कर दिया है। इस शासनको मिटा देने या दुरुस्त कर देनेका संकल्प लिया है। पर फिर भी इतनी शक्तिशाली सरकार कुछ भी नहीं बोल रही है। क्यों? सरकार देख रही है कि हम लोग शान्तिसे काम कर रहे हैं। यही हमारा धर्म हो गया है। इस दशामें सरकार हमारा कुछ नहीं कर सकती। यदि आज हम शस्त्र उठा लें तो उसकी ताकतकी वृद्धि होने लगेगी। यदि आप पंजाबके अत्याचारोंका निवारण, खिलाफतके मामलेमें न्याय और स्वराज्यकी प्राप्ति चाहते हैं तो ठंडी हिम्मतसे काम लीजिए। इसी ढंगसे अगर काम होगा तो ठीक होगा। चाहे वकील वकालत न छोड़ें, विद्यार्थी विद्यालयोंका बहिष्कार न करें, लोग कौंसिलमें जायें, सरकारी नौकरी और खिताबोंका त्याग न हो, इन सबसे मुझे जरा भी रंज नहीं होता; किन्तु यदि एक भी खून हो जाये, लकड़ी चल जाये या कोई किसीको गाली दे दे तो मुझे बड़ा ही रंज होता है, क्योंकि वहाँ