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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तैयार कर सकते हैं। यदि हमें सब सामान मिल जाये तो कितनी भारी सेवा हो सकती है। उस समय आप जलसा करना भूल जायेंगे। मैं जलसोंसे थक गया हूँ। इन जलसोंमें शरीक होनेसे हमें एक अनुभव हुआ है कि हम लोग अपने बलका उपयोग अपना गला घोंटनके लिए करते हैं। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरेके स्थानको ग्रहण करना चाहता है, वहाँ क्या होगा? सितम्बर माससे मैं यह अनुभव कर रहा हूँ, मैं घबरा उठा हूँ। हम इतने [छोटे] जलसोंमें भी शान्ति नहीं रख सकते। गोरखपुरमें प्रायः डेढ़ लाख जन उपस्थित थे और बड़ी शान्तिसे काम हुआ। पर हमारा काम केवल इससे नहीं चल सकता। यदि काम चलाना है तो चरखा ले लो। जिस दिन सब लोग इस बातको समझ लेंगे उस दिन ऐसे जलसोंकी आवश्यकता नहीं रह जायेगी और न उसके लिए किसीको फुरसत ही रह जायेगी। जितना समय जलसोंमें नष्ट किया जाता है यदि उतने ही समयमें हम सूत कातें तो कितने नंगोंको ढाँक सकते हैं? यदि एक वर्षमें स्वराज्य प्राप्त करना है तो दो बातें आवश्यक हैं——एक तो शान्तिका ध्यान बनाये रखना और दूसरे विदेशी वस्त्रका त्याग करना और उसको सफल बनानके लिए चरखा ग्रहण करना। जिस दिन आप लोग इन बातोंको समझ जायेंगे, उस दिन ऐसे जलसोंकी आवश्यकता न रह जायेगी। यदि आपने चरखके मंत्रको समझ लिया है तो स्वराज्य निकट है। यदि आपने समझ लिया है कि तर्के-मवालात शान्तिसे चलाना है और यदि आपने समझकर इसमें हाथ डाला है तो शान्तिसे रहिये। इसमें हम सरकारको मजबूर कर सकते हैं। काम करते चलिए। जेलसे मत घबराइए। जो जेल जानेवालोंको छुड़ानेका प्रयत्न करते हैं वे अपनी बुजदिली दिखाते हैं। वे स्वयं तो जाना ही नहीं चाहते। जेलमें हमें प्रसन्न-चित्त जाना चाहिए। उसे महल समझ लेना चाहिए। हमारा काम जेलमें जाना और दूसरोंको भेजना है। यदि हम लोग यह नहीं करते तो संसार यही कहेगा कि भारतके लोग कहना जानते हैं और करना कुछ भी नहीं जानते। पर इन सब प्रवृत्तियों को चलानेके लिए रुपयेकी आवश्यकता है। चरखा चलानेके लिए, विद्यापीठ स्थापित करनेके लिए, राष्ट्रीय कामके लिए, जो लोग वकालत छोड़ देंगे उनके लिए, पैसा चाहिए। इतनी बड़ी सभामें से मैं खाली हाथ नहीं जा सकता। मैं भीख माँगता हूँ। जो आप लोगोंको देना हो दें। स्मरण रखिए, यदि आपने चरखेको अपनाया और अपने हाथोंसे ही बने कपड़े पहननेका संकल्प किया तो स्वराज्य सितम्बरमें मिल जायेगा।

आज, १०–२–१९२१