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१७०. टिप्पणियाँ

धोलेमें कालेका मेल

एक मित्र लिखते हैं :[१]

यह टीका अक्षरशः सही है। प्रत्येक सुधारके समय उसके दुरुपयोगका भय रहता ही है। यही बात खादीके सम्बन्धमें भी लागू होती है। खादीके उपयोगके बिना पूरी देशभक्ति नहीं हो सकती, ऐसा मैं कहता तो हूँ; लेकिन खादी पहननेवाला मनुष्य तो खुफिया पुलिसका सिपाही भी हो सकता है और खादी न पहननेवाला मनुष्य गरीब होनेके कारण अथवा खादीपर विश्वास न होनेके कारण खादी न पहननेपर भी स्वदेश-प्रेमी हो सकता है; इस बातसे भी कोई इनकार नहीं कर सकता। इसलिए खादी पहननेवाला निस्सन्देह देशभक्त ही है, हमें यह मान लेनेकी कोई जरूरत नहीं है। हम निस्सन्देह यह मान सकते हैं कि खादी पहननेवाले मनुष्यका स्वदेशीका पालन करनेवाला होनेकी सम्भावना है। अगर खादीके प्रति लोगोंकी अरुचि निकल जाये और उन्हें खादीमें ही सुन्दरता दिखाई देने लगे तो हमारे लिए इतना ही बहुत है। जिस तरह खादीमें हमें समस्त गुणोंका आरोप नहीं करना चाहिए, उसी तरह यदि खादी पहननेवाला मनुष्य अपने दुराचरणसे खादीको लजाता है तो उससे हमें धक्का भी नहीं लगना चाहिए। आडम्बरमात्र त्याज्य है; लेकिन बाहरी पहनावा ऐसा होना चाहिए जो आन्तरिक भावोंके अनुरूप हो, अर्थात् जिसका अन्तःकरण निर्मल है उसका पहरावा भी सादा होगा, जिसके अन्तःकरणमें देश-प्रेम है उसका पहनावा भी खादीका होगा। जबतक जगतमें मूर्ख अथवा अज्ञानी लोग हैं तबतक धूर्तोका धन्धा चलता ही रहेगा। इससे हमें धोखा खानेकी अथवा डरनेकी जरूरत नहीं है।

हम देखते हैं कि जिस तरह खादीका दुरुपयोग किया जाता है उसी तरह असहयोगका भी दुरुपयोग किया जाता है। कुछ लोग ऐसा आचरण कर रहे हैं मानो असहयोगके प्रस्तावपर हाथ ऊँचा करनेसे उन्हें सरकारके साथ सहयोग करनेवालोंको गाली देनेका परवाना मिल गया है। वस्तुतः देखा जाये तो खादीका और असहयोगका दुरुपयोग इस शुद्ध आन्दोलनको दूषित करता है और स्वराज्य प्राप्तिके समयको दूर ले जाता है। इस मलिनताके कालमें हम जब एक स्थानसे मैल छुड़ाते हैं तो वह दूसरे स्थानपर जमता दिखाई देता है। ऐसी मुश्किलोंके बावजूद जिन्होंने सत्यके दर्शन किये हैं उनके लिए एकमात्र रास्ता यही है।

 
  1. पत्र यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है। उसमें खादीको बहुत अधिक महत्व दिये जानेके विरुद्ध यह चेतावनी दी गई थी कि कहीं ऐसा न हो कि पाखंडी लोग खादी पहनकर खादी न पहननेवाले ईमानदार लोगोंको ठगने लगें।