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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हो, जिससे हिन्दू-मुसलमान एक दूसरेके हृदयमें प्रवेश कर सकें। अंग्रेज कहते हैं कि यह मेल दिखावा-मात्र है। हिन्दुओं और मुसलमानोंका मेल कभी नहीं हो सकता। यह केवल अपने-अपने मतलबके लिए है। जहाँ मतलब सिद्ध हुआ कि फिर वही हालत हो जायेगी। पर यह व्यर्थ है। यदि हिन्दू और मुसलमान परस्पर रक्षाके लिए कटिबद्ध हैं, तो यह नहीं हो सकता। गुरु विद्यार्थीको खींच सकता है। बाबू भगवानदास ऐसे गुरु हैं। सारा भारत आपकी विद्वत्ताको जानता है। जिस समय गुजरातमें राष्ट्रीय विद्यालय खुल रहा था उस समय मैंने आपसे प्रार्थना भी की थी कि आप काशी छोड़कर थोड़े दिनके लिए गुजरात आ जायें। वे आपके आचार्य हैं। मैं उनसे दीनतापूर्वक प्रार्थना ही कर सकता हूँ। कृपलानी[१] तो हमारे छोटे भाई हैं। उनको तो मैं हुक्म देनेका भी अधिकार रखता हूँ। अन्य महाशयको, जिनका नाम बाबू भगवानदासने लिया है, मैं स्वयं नहीं जानता। इस कारण यहाँ मैं प्रार्थना करता हूँ कि काशी अब ऐसी होनी चाहिए कि सारे भारतकी इसपर दृष्टि हो। हमें मालवीयजीका मन जीतना चाहिए। मालवीयजीने मुझसे कहा है कि अगर उनके चित्तमें विश्वास हो जाये कि ऐसा करना ठीक है तो वे हिन्दू विश्वविद्यालय छोड़ देंगे। उनका कहना है कि उसे छोड़नेसे हिन्दुस्तानकी हानि है। इस विद्यालयको आप लोग सुशोभित कीजिए। इससे यह यज्ञ कार्य जल्दी ही यशस्वी होकर चलने लगेगा। हमारे माननीय भाई मालवीयजी भी तब हमारी बात समझ जायेंगे। अगर यहाँ हिन्दू-मुसलमान मिलकर काम करेंगे तो आपकी मार्फत हमें स्वराज्य मिल जायगा। इसी अभिलाषासे मैंने शिवप्रसाद और जवाहरलालसे कहा था कि इस कार्यका आरम्भ मेरे हाथसे कराइए। मेरी क्या अपेक्षा है, मैंने आपको बता दी। प्रभुसे मेरी प्रार्थना है कि दिन-प्रतिदिन इस विद्यापीठकी वृद्धि हो और यह विद्यालय इस राक्षसी सल्तनतको मिटाने या इसे दुरुस्त करनेमें हिस्सा लें।

आज, ११–२–१९२१

 

१७२. भाषण : फैजाबादमें

१० फरवरी, १९२१

गांधीजीने सभामें एक ऊँचे मंचपर रखी हुई कुर्सीपर बैठकर भाषण दिया। उन्होंने बैठे-बैठे भाषण देनेके लिए क्षमा-याचना की। उन्होंने श्री केदारनाथकी, जो गिरफ्तार कर लिये गये थे[२], प्रशंसा की और कहा कि सरकारने उनको गिरफ्तार करके उनकी तथा लोगोंकी परीक्षा लेनी चाही है। सरकार लोगोंको डराना चाहती है। यदि श्री केदारनाथ आन्दोलनसे अलहदा होनेके लिए तैयार हो जायेंगे तो वह उन्हें छोड़ देगी।

  1. आचार्य जे॰ बी॰ कृपलानी।
  2. जनवरी १९२१ में उत्तरप्रदेशके कुछ भागोंमें हुए किसानोंके उपद्रवोंके कारण।