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पत्र : मणिबेन पटेलको


उसके बाद उन्होंने किसानोंके उपद्रवोंकी चर्चा की और किसानों द्वारा किये गये हिंसात्मक कार्यपर खेद प्रकट किया...। गांधीजीने हिंसाको अत्यन्त तीव्र और स्पष्ट शब्दोंमें निन्दा की और कहा कि उनके खयालसे ऐसा करना ईश्वर और मानवके प्रति पाप है। उन्होंने जमींदारों और किसानोंमें झगड़ा करवानेके समस्त प्रयत्नोंकी भर्त्सना की और किसानोंको सलाह दी कि वे ऐसे लड़नेके बजाय स्वयं कष्ट सहें; क्योंकि हमें तो अपनी समस्त शक्ति सर्वाधिक शक्तिशाली जमींदार अर्थात् अंग्रेज सरकारसे लड़नेके लिए संचित कर रखनी है। उन्होंने लोगोंसे अनुरोध किया कि वे अपने हृदयोंको शुद्ध करें, मनोंसे भय निकाल दें और मजबूत बनकर निर्भयतापूर्वक आगे बढ़ें।

उन्होंने अपने दक्षिण आफ्रिकामें किये गये सत्याग्रह और उसकी सफलताका स्मरण कराया और [अपने स्वागतके समय] स्टेशनपर तलवारें लेकर निकाले गये जुलूसकी[१] निन्दा की। उन्होंने कहा कि हिंसा तो कायरताका लक्षण है। तीस करोड़ लोग स्वयं एक शक्ति हैं और हिंसा किये बिना असहयोगके द्वारा स्वराज्य ले सकते हैं। तलवार तो कमजोरका हथियार है। उन्होंने लोगोंसे संगठित होने, चरखा चलाने और धन-संग्रह करनेकी अपील की। उन्होंने छात्रों द्वारा स्कूल और कालेज छोड़नेका उल्लेख करते हुए कहा कि सोलह सालसे अधिक आयुके लड़के अपने माता-पिताकी इच्छाके विरुद्ध भी इन संस्थाओंका त्याग कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि स्वराज्य शान्ति रखकर, चरखा चलाकर, असहयोग करके और धन संग्रह करके सात महीनेमें लिया जा सकता है। उन्होंने अन्तमें लोगोंसे धन देनेकी अपील की।

[अंग्रेजीसे]
लीडर, १३–२–१९२१

 

१७३. पत्र : मणिबेन पटेलको

दिल्ली
१२ फरवरी, १९२१

चि॰ मणि,[२]

तुम्हारा पत्र मुझे मिला। बहुत प्रसन्नता हुई। तुम भाई[३]-बहन आध घंटा रोज कातो तो इससे स्वराज्य नहीं मिलेगा। उत्साह हो तो जरूर चार घंटे कातो। अभ्याससे अच्छा कातना आ जायेगा।

  1. मुसलमान स्वयंसेवकोंने स्टेशनके दरवाजेपर नंगी तलवारें लिए हुए पंक्तिबद्ध होकर गांधीजीका स्वागत किया था। यहाँ उसी घटनाका उल्लेख किया गया है।
  2. सरदार वल्लभभाई पटेलकी पुत्री।
  3. डाह्याभाई पटेल।