अभी श्री दास[१] वहाँ नहीं आ सकते। मुझे पत्र लिखा करो। आजकल क्या पढ़ती हो, लिखना।
बापूके आशीर्वाद
पुनश्च :
अभी तो मुझे बहुत घूमना पड़ता है। आज दिल्लीमें हूँ। अभी पंजाब जाना है, बादमें लखनऊ, वहाँसे बेजवाड़ा। इसलिए पता नहीं अहमदाबाद कब आना होगा। बापूसे कहना कि कांग्रेसकी तैयारी करें।[२]
चि॰ मणिबेन
द्वारा, वल्लभभाई पटेल, बार एट लॉ
भद्र, अहमदाबाद
[गुजराती से]
बापुना पत्रो : मणिबहेन पटेलने
१७४. स्वराज्य देरसे मिलेगा
मुझे ऐसा शीर्षक देते हुए भी शरम आती है। लेकिन बम्बई और पूनामें जो घटनाएँ हुई हैं और अपनी यात्राके दौरान जो थोड़ा बहुत मेरे देखनेमें आया है उन सबके आधारपर मुझे यह कहना पड़ा है। जिन लोगोंने बिहारमें हाटें लूटीं, और जिन्होंने शास्त्री[३] और परांजपेको[४] बोलने नहीं दिया उन्होंने स्वराज्यकी घड़ी की सुई धीमी कर दी है; उन्होंने सत्यके नामपर असत्यका आचरण किया है; उन्होंने शान्तिकी शपथ लेकरके अशांति फैलाई है; उन्होंने उसीको पुष्ट किया है जो शास्त्री कहते थे। यदि शास्त्री और उन-जैसे दूसरे लोगोंको यह विश्वास हो जाये कि हिन्दुस्तान सचमुच अहिंसात्मक युद्ध लड़ सकता है तो वे आज ही असहयोगी बन जायें और यदि सारा हिन्दुस्तान आज ही असहयोग आन्दोलनमें शामिल हो जाये तो आज ही स्वराज्य मिल जाये।
यदि वकील वकालत न छोड़ें, विद्यार्थी सरकारी स्कूलोंका परित्याग न करें और जिन्हें खिताब मिले हैं वे अपने खिताबों को न छोड़ें तो भी जल्दी ही स्वराज्य मिल सकेगा, ऐसा मुझे लगता है। लेकिन यदि अशान्ति फैले तो स्वराज्य नहीं मिल सकता; एक वर्षमें तो कदापि नहीं मिल सकता।