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स्वराज्य देरसे मिलेगा


श्री शास्त्रियर और उन-जैसे अन्य लोग शुद्ध भावसे मानते हैं कि असहयोगकी प्रवृत्तिसे देशका नुकसान ही होगा। इसमें उनका क्या दोष है? उनके भ्रमको हम बलात् अथवा अविनयपूर्वक दूर नहीं कर सकते।

जो लोग शांति-भंग करते हैं वे देशके शत्रु हैं, क्योंकि वे सरकारसे सबसे ज्यादा सहयोग करते हैं। अशान्तिको मिटानेका उपचार सरकार जानती है। यदि हम उसकी अपेक्षा अधिक शस्त्रबलका परिचय दें तो वह अवश्य हार जायेगी। लेकिन जो बल उसके पास ही नहीं है यदि हम उस बलसे उसे हरायें तो हमें अपना साध्य प्राप्त करनेमें कमसे- कम समय लगेगा और उससे कुछ भी सीखना न पड़े। इतनी बात तो एक बालककी समझमें भी आ सकती है।

असहयोगकी विजय तभी हो सकती है जब हम बहुत ज्यादा लोगोंको असहयोगका चमत्कार बता सकें। और वह चमत्कार शान्तिसे ही बताया जा सकता है। जैसे अन्धकार उजालेसे ही दूर किया जा सकता है वैसे ही सरकारके शस्त्रबलको हम शान्तिमय असहयोगसे ही दबा सकेंगे।

मैंने अभीतक तो सिद्धान्तके बारेमें ही लिखा है। अब ऐसे समय असहयोगियोंको क्या करना चाहिए? यदि हम किसी सभामें अशिष्टताको नहीं रोक सकते तो हमें ऐसी सभामें जाना ही नहीं चाहिए। शास्त्रियरकी सभामें जब 'शेम' की आवाज लगाई गई तभी जिन्हें यह अशिष्टता पसन्द नहीं आई थी यदि वे लोग सभासे उठकर चले गये होते तो अच्छा होता; शास्त्रियरकी सभामें ऐसी आवाज लगानेवाले पाँच-सात लोग रह जाते तो रह जाते; लेकिन असहयोगी तो इस दोषसे बच जाते। हम किसीकी सभामें जानेके लिए बाध्य नहीं हैं; लेकिन अगर हम उसमें जाते हैं तो हम वहाँ स्वयं शिष्टताका पालन करने और दूसरोंसे करवानेके लिए अवश्य बाध्य हैं।

पूछा जा सकता है, अगर सरकारके जासूस अशिष्टता करें तो इसमें हमारा क्या दोष? हमारा दोष यह है कि हम उस अशिष्टताको नहीं दबा सकते। सिपाही अपने सामने खाइयों और चट्टानोंको देकर स्तब्ध नहीं रह जायेगा, बल्कि खाइयोंको भरकर और चट्टानोंको काटकर आगे बढ़ेगा। सरकार हमपर शासन करती है, क्योंकि वह हमारी सब युक्तियोंको नष्ट करनेकी शक्ति रखती है। जब हम उसकी सारी चालोंको काट देंगे तभी हम सरकारपर शासन कर सकेंगे। यदि सरकारके जासूस सभाओंको भंग करने आते हों तो हमें उनके लिए मैदान खुला छोड़ देना चाहिए। हमें उस सभासे शान्तिपूर्वक उठ जाना चाहिए। शान्तिमय असहयोगका शस्त्र इतना शुद्ध है कि उसमें यदि तनिक भी मलिनता आती है तो वह दिख जाती है। उसकी धार इतनी तीक्ष्ण है कि वह कठिनसे-कठिन वस्तुको काट सकती है। इसलिए उसके समान तुरन्त प्रभाव दिखानेवाला कोई दूसरा शस्त्र नहीं है। फिर भी उसका उपयोग करना इतना आसान है कि एक बच्चेको भी समझाया जा सकता है। जहाँ कुछ 'करना' हो वहाँ अनुभव और प्रशिक्षणकी जरूरत होती है। असहयोगका अर्थ है 'न करना'। बालकसे अक्षर लिखानेमें वर्षों लग जाते हैं। लेकिन यदि उससे यह कहें कि तू अक्षर न लिख तो यह उसके लिए बिल्कुल आसान है। सच्चा और आज्ञाकारी बालक तो न करनेकी बातको अपने-