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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आप समझ सकता है। उसी तरह सच्चा और श्रद्धालु असहयोगी भी निश्चित कार्योंको न करनेकी बात बिना किसी प्रशिक्षणके समझ सकता है। इसी तरह सोच-समझकर किये गये त्यागमें से ही ज्ञान और बल उत्पन्न होता है। हिन्दुस्तानको शस्त्र संचालन सीखना हो तो भी शान्ति और असहयोगकी शिक्षा लेनी होगी।

अतएव इस लेखको पढ़नेवाले साथियोंको निम्नलिखित नियमोंपर ध्यान देना होगा :

यदि सहकारियोंकी सभामें शिष्टताभंग होनेकी तनिक भी शंका हो तो वे उसमें न जायें और अन्य असहयोगियोंको न जाने दें। उन्हें लोगोंको इस तरहका शिक्षण देनेकी पूरी कोशिश करनी होगी।

अब वकीलोंको अथवा बालकोंको कुछ समझाना बाकी नहीं रह गया है; मतलब यह है कि जो लोग अदालतों और स्कूलोंसे निकल आये हैं उनको प्रशिक्षित करनेसे, उनके चरित्रसे और उनकी निर्भयतासे दूसरे लोग अपने-आप निकल आयेंगे।

असहयोगियोंको अब कारीगरोंके वर्गमें प्रवेश करना है। इस तरह हम प्रत्येक वर्गकी सेवा करके आगे बढ़ सकेंगे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १३–२–१९२१

 

१७५. भाषण : दिल्लीमें तिब्बिया कालेजके उद्घाटनपर[१]

१३ फरवरी, १९२१

हकीमजी और मित्रो,

इस उत्सवमें आनेमें मुझे बड़ा संकोच हुआ, क्योंकि मुझे मालूम है कि यदि इस समय सरकार और हमारे बीचमें ऐसा दुःखदायी विरोध न खड़ा हो गया होता तो इस महान् विद्यालय[२] और चिकित्सालयको खोलनेके लिए श्रीमान् वाइसराय साहब[३] निमंत्रित किये गये होते, विशेषकर जब उसकी नींव उनके पूर्ववर्ती वाइसराय लॉर्ड हार्डिगने[४] डाली थी। यदि वाइसराय-जैसे महापुरुषके स्थानमें मैं नियुक्त किया गया हूँ तो मेरा संकोच करना उचित ही है। एक और भी कारण है और वह उससे भी अधिक व्यक्तिगत है। औषधि और अस्पतालके सम्बन्धमें मेरे विचित्र विचार हैं और ऐसी जगहों के सम्पर्कसे मैं बहुत दूर रहता हूँ। तथापि अपने योग्य हकीमजीके लिए मेरे मनमें इतना आदर है कि मैंने अपना संकोच दूर कर दिया। मैं सष्ट कहना चाहता

  1. यह भाषण अंग्रेजीमें १५–२–१९२१ के बॉम्बे क्रॉनिकलमें भी छपा था। इसे उससे मिला लिया गया है। यहाँ प्रचलित हिज्जों और अभिव्यक्तिको स्पष्टताकी दृष्टिसे यंत्र-तंत्र कुछ शाब्दिक परिवर्तन भी किये गये हैं।
  2. तिब्बिया कालेज; इस राष्ट्रीय संस्थाकी स्थापना हकीम अजमल खाने की थी।
  3. लॉर्ड चेम्सफोर्ड।
  4. १८५८–१९४४; भारतके वाइसराय, १९१०–१६ ।