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१७६. पत्र : सी॰ एफ॰ एन्ड्र्यूजको

दिल्ली
सोमवार [१४ फरवरी, १९२१][१]

प्रिय चार्ली,

आज मेरा मौनवार है। स्वाभाविक रूपसे मनमें उन लोगोंका खयाल आ रहा है जो मेरे निकट सबसे प्रिय और घनिष्ठ हैं। शास्त्री और परांजपेके सम्बन्धमें आपका पत्र मुझे अच्छा लगा। वह शर्मनाक घटना थी। फिर भी हमें अपना काम तो चालू ही रखना चाहिए और साथ ही हर तरहसे हुल्लड़बाजीको रोकनेके लिए प्रयत्न करना चाहिए। जितना अधिक सोचता हूँ उतना ही अधिक स्पष्ट रूपसे मुझे इस आन्दोलनके पीछे ईश्वरका हाथ नजर आता है। उत्तेजनात्मक परिस्थितियोंके रहते हुए भी लोगोंने जो आत्मसंयम दिखाया वह आश्चर्यजनक है। इस आत्मसंयमके पीछे संगीनोंका भय भी है, ऐसा मैं मानता हूँ।

मैं न तो विज्ञानकी उपेक्षा करना चाहता हूँ और न सामान्य शिक्षाकी। किन्तु मैं यह अवश्य चाहता हूँ कि इस परीक्षा-कालमें अन्य सभी गतिविधियाँ बन्द कर देनी चाहिए। यह अवधि जनताके लिए ही रखी गई है। जनता एक अवधि निश्चित करके ही काम करना पसन्द करती है। मैं जानता हूँ कि यदि इस अवधिमें भारतमें अहिंसाको प्रतिष्ठापना की जा सकी तो तुम देखोगे कि हमें सितम्बरसे[२] पहले ही स्वराज्य मिल जायेगा। तुमको याद होगा कि गिरमिट-प्रथाको समाप्त करनेके लिए भी एक अवधि निर्धारित की गई थी। इसमें ऐसी कोई कोशिश नहीं है कि शिक्षाको हटाकर उसके स्थानपर असहयोगको ही रख दिया जाये।

जितनी देर तिब्बिया कालेजमें रहे अच्छा लगता रहा। मैं चाहता हूँ कि उद्घाटनके अवसरपर दिया गया मेरा भाषण तुम पढ़ो और उसके बारेमें अपनी राय मुझे लिखो। ड्यूकको लिखे गये अपने पत्रकी[३] भी मैं तुमसे समीक्षा चाहता हूँ।

मुझे ३६, मुजंगरोड, लाहौरके पतेपर पत्र लिखना। मैं करीब एक पखवारे तक पंजाबमें रहूँगा।[४]

सस्नेह,

तुम्हारा,
मोहन

अंग्रेजी पत्र (जी॰ एन॰ ९५४) की फोटो-नकलसे।

  1. पत्रमें उल्लिखित विभिन्न घटनाओंसे पता चलता है कि पत्र इसी तारीखको लिखा गया था।
  2. सितम्बर १९२० में कलकत्तामें हुए कांग्रेसके विशेष अधिवेशनके एक वर्षे बाद।
  3. देखिए "पत्र : ड्यूक ऑफ कनाॅटको", २ फरवरी, १९२१ के पूर्व।
  4. गांधीजीने १४ फरवरी, १९२१ को दिल्लीसे प्रस्थान किया और १५ फरवरीसे ८ मार्च, १९२१ तक पंजाबमें रहे।