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टिप्पणियाँ

अवश्य की है कि वे जनताके प्रति वफादार बने रहेंगे। कांग्रेसको यह भी आशा है कि सैनिक जातियोंसे नये लोग पुलिस या सेनामें भरती नहीं होंगे और दूसरे लोग भी अब भरती नहीं होंगे।

जिन शर्तोंका मैंने उल्लेख किया है यदि कुछ सन्तोषजनक ढंगसे इनका पालन हो सके तो निश्वय ही सितम्बरसे पूर्व स्वराज्य मिल सकता है। यह तो कोई भी नहीं कह सकता कि मैंने जो शर्तें बताई हैं उनका पालन कोई कठिन चीज है।

[अंग्रेजीसे]
ट्रिब्यून, १९–२–१९२१

 

१७८. टिप्पणियाँ

कौनसी वस्तु असहयोग आन्दोलनको नष्ट कर देगी?

निश्चय ही असहयोगियों द्वारा की गई हिंसा। किन्तु यह वह बात नहीं है जिसका मैं उत्तर देना चाहता था। मुझसे वास्तवमें प्रश्न यह पूछा गया है कि 'असहयोगको नष्ट करनेके लिए सरकार क्या कर सकती है?' और [मेरा उत्तर है] : मुसलमानोंकी माँगके अनुसार खिलाफतके प्रश्नका समाधान, भारतवासियोंकी माँगके अनुसार पंजाबके सवालका निपटारा तथा राष्ट्रके अधिकार-प्राप्त प्रतिनिधियों द्वारा बनाई जानेवाली योजना अनुसार स्वराज्यका दिया जाना।

स्वराज्य क्या है?

यह दूसरा प्रश्न है। इसका उत्तर ऊपरके अनुच्छेदमें अंशतः दिया जा चुका है। कोई भी एक आदमी स्वराज्यकी योजना नहीं बना सकता, क्योंकि जिस स्वराज्यकी माँग की जा रही है वह एक आदमीका नहीं होगा; न ही कोई पेशगी योजना बनाई जा सकती है। जो चोज आज राष्ट्रको सन्तोष देती है, सम्भव है वह कल सन्तोष न भी दे। हमारा विकास एक जीवन्त विकास है; उसे वैसा होना भी चाहिए। इसलिए राष्ट्रकी इच्छा तो दिन-दिन बदलती रह सकती है। तथापि स्वराज्यकी योजनाकी एक मोटी रूपरेखा तो निश्चय ही पहलेसे निर्धारित की जा सकती है। शिक्षा, विधि, पुलिस तथा सेनापर राष्ट्रके प्रतिनिधियोंका पूरा नियन्त्रण होना चाहिए। इसी तरह वित्तीय व्यवस्थापर भी हमारा पूरा नियंत्रण होना चाहिए; और यदि हमें स्वशासित रहता है, तो एक भी सैनिक हमारी अनुमतिके बिना देशके बाहर नहीं जा सकेगा।

यूरोपीयोंके हितोंका क्या होगा?

स्वशासित भारतमें वे उतने ही सुरक्षित होंगे जितने आज हैं। किन्तु उन्हें श्रेष्ठतर जातिके कोई विशेषाधिकार नहीं होंगे, उनके लिए कोई रियायत नहीं होगी, उन्हें किसी प्रकारका शोषण नहीं करने दिया जायेगा। अंग्रेज सभी अर्थोंमें हमारे मित्रोंके समान रहेंगे, शासकोंके समान नहीं।