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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ब्रिटेनके साथ हमारे सम्बन्धका क्या होगा?

जहाँतक मुझे मालूम है, कोई भी इस सम्बन्धको अकारण समाप्त नहीं कर देना चाहता। यदि इंग्लैंडकी नीति खिलाफतके प्रश्नपर मुसलमानोंकी भावनाके विरुद्ध पड़ती है, अथवा पंजाबके बारेमें भारतीय भावनाके विरुद्ध पड़ती है, तो फिर पूर्ण स्वतन्त्रता होनी ही चाहिए। जो भी हो, यह सम्बन्ध साझेदारीका होना चाहिए——रजामन्दीसे मर्यादित और पारस्परिक स्नेह तथा सम्मानपर आधारित।

क्या भारत इसके लिए तैयार है?

सो तो समय दिखलायेगा। यों मुझे विश्वास है कि वह तैयार है। कांग्रेस जिस स्वराज्य की माँग कर रही है, वह इंग्लैंड द्वारा दिया जानेवाला स्वराज्य नहीं है। स्वराज्य तो वह है जो राष्ट्र माँगता है और बलात् ले सकता है; स्वराज्य उसी अर्थमें चाहिए जिसमें दक्षिण आफ़्रिकामें उसे प्राप्त किया।

धोती और चादर

समयके चिह्न अचूक हैं। कहा जाता है कि [सुधारोंके अनुसार] पुनर्गठित परिषद् में एक सदस्य धोती और चादर धारण किये उपस्थित हुए, और उन्होंने बंगला भाषामें शपथ-ग्रहण करनेका आग्रह किया। सदस्य महाशय अपने साहसके लिए बधाईके पात्र हैं। हमारे लिए सभी अवसरोंपर अपनी राष्ट्रीय पोशाकमें उपस्थित होना बिलकुल स्वाभाविक बात है। और यह आशा की जा सकती है कि सदस्यगण यथासम्भव राष्ट्रके साथ सहयोग करेंगे, यद्यपि परिषदोंमें जानेका आग्रह करके उन्होंने राष्ट्रकी इच्छाकी अवहेलना की है। यदि वे परिषदकी बैठकोंमें खद्दरकी पोशाकमें उपस्थित होनेका तथा अपनी प्रान्तीय भाषामें बोलनेका साहस करेंगे तो निश्चय ही वे राष्ट्रकी सेवा करेंगे। राष्ट्रके अनेक लोगोंका अंग्रेजी बोलना थोड़ेसे अंग्रेजोंका हमारी प्रान्तीय भाषाएँ बोलनेकी अपेक्षा अधिक कठिन काम है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १६–२–१९२१