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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किया तो मैं उत्तरदायित्वसे मुँह नहीं मोडूँगा। मैं क्षमा मागूँगा, अपने प्रतिशोधी और क्रुद्ध देशवासियोंसे नहीं, वरन् भगवानसे——जो मेरा उद्देश्य जानता है, और जो यह भी जानता है कि उसने मुझे एक ऐसे कमजोर आदमीके रूपमें पैदा किया है जो गलती कर सकता है, और फिर भी जिसने मुझे निर्णय करने और कार्य करनेकी शक्ति दी है। मैं दावा करता हूँ कि मैं सिपाही हूँ, और जो बड़ीसे-बड़ी जोखिमें नहीं ले सकता, वह सिपाही ही क्या? 'दि सवेंट आफ इंडिया' द्वारा मेरे लिए प्रयुक्त "नबी" शब्द मुझपर किया गया एक निर्दय आघात है। उस पत्रके लेखकको जानना चाहिए कि मैं 'नबी' होनेका दावा नहीं करता। हाँ, यह दावा मैं अवश्य करता हूँ कि मैं देशका एक ऐसा निष्ठावान सेवक हूँ, जिसके हृदयकी यह प्रबल इच्छा है कि अपने देशकी उस असह्य बोझसे मुक्त होनेमें सहायता करे, जिसने उसे बुरी तरह झुका दिया है, और जिसे यह देश कभी-कभी अनुभव भी नहीं कर पाता।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १६–२–१९२१

 

१८०. हाथ कताईपर कुछ और विचार

'सवेंट ऑफ इंडिया' ने कताईकी जो हँसी उड़ाई है, उसका कारण तथ्योंका अज्ञान ही है, मैं यह बात आगे स्पष्ट करने जा रहा हूँ। निःसन्देह कताईसे स्त्रियोंके सतीत्वकी रक्षा होती है। जिन स्त्रियोंको खुले-आम सड़कोंपर काम करना पड़ता है और जिनके शील-भंगका हर समय खतरा बना रहता है वे स्त्रियाँ कताईको अपनाकर अपनी रक्षा कर सकती हैं। मुझे अन्य किसी ऐसे धन्धेकी जानकारी नहीं है जिसे लाखों स्त्रियाँ अपना सकती हों। मैं मजाक उड़ानेवाले इस लेखकको यह भी बता दूँ कि अनेक स्त्रियाँ कताईको अपनाकर अपने घरोंकी सुरक्षित और पवित्र सीमाओंमें ही जीविका कमानेमें समर्थ हो सकी हैं। उनका कहना है कि कताई-जैसी बरकत किसी और धन्धेमें नहीं है। मैं तो यह भी मानता हूँ कि चरखेमें संगीत वाद्योंके-से गुण हैं। अन्न और वस्त्रके अभावसे दुःखी किसी स्त्रीको साजपर नाचने-गानेका उत्साह नहीं हो सकता। किन्तु मैंने देखा है कि चरखेको चलते देखकर स्त्रियोंके चेहरोंपर मुस्कान थिरकने लगती है। वे जानती हैं कि इस अपरिष्कृत यन्त्रके सहारे वे अपने पहनने-खानेका प्रबन्ध कर सकती हैं।

जी हाँ; इससे भारतकी घोर कंगालीकी समस्या सुलझ सकती है और यह अकालसे भी हमारी रक्षा कर सकता है। मजाक उड़ानेवाला लेखक सिंचाई और लोक सहायता सम्बन्धी कार्योंकी उन पोलोंसे अनभिज्ञ है जिन्हें मैं अच्छी तरह जानता हूँ। ये काम तिरी धोखा-धड़ी हैं। यदि मुझे सलाह देनेवाले ये महानुभाव घर-घरमें चरखेका प्रचार कर सकें तो मैं विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि केवल चरखा ही अकालसे पूरा-पूरा संरक्षण प्रदान कर देगा। आस्ट्रियाका उदाहरण देना बेकार है। मैं अपने