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१८१. हड़तालें

हड़तालें करना आजकल एक आम चीज हो गई है।[१] ये हड़तालें वर्तमान असन्तोषकी निशानी हैं। तरह-तरहके अस्पष्ट विचार हवामें फैल रहे हैं। सबके दिलोंमें एक अस्पष्ट-सी आशा बँधी हुई है और यदि वह आशा कोई ठोस रूप धारण नहीं कर पाई तो लोगोंको बड़ी निराशा होगी। अन्य देशोंकी तरह भारतमें भी मजदूर-जगत् उन लोगोंकी दयापर निर्भर है, जो उनके सलाहकार और पथ-प्रदर्शक बन जाते हैं। ये लोग सदा सिद्धान्तका ही अनुसरण नहीं करते और करते भी हैं तो सदा बुद्धिमानीसे नहीं करते। मजदूरोंको अपनी हालतपर असन्तोष है। उनका असन्तोष मानना भी हर तरह बजा है। उन्हें सिखाया जा रहा है, और ठीक ही सिखाया जा रहा है, कि वे अपनेको मालिकोंके धनवान बननेका मुख्य साधन समझें। इसलिए उन्हें अपना काम छोड़ देनेको प्रेरित करनेमें ज्यादा कोशिश करनेकी जरूरत नहीं होती। राजनीतिक स्थितिका भी भारतके मजदूरोंपर असर पड़ने लगा है। और ऐसे मजदूर-नेताओंका अभाव नहीं है, जो समझते हैं कि राजनीतिक हेतुओंके लिए हड़तालें कराई जा सकती हैं।

मेरी रायमें राजनीतिक हेतुसे मजदूरों की हड़तालोंका उपयोग करना अत्यन्त गम्भीर भूल होगी। मैं इससे इनकार नहीं करता कि इस प्रकारकी हड़तालोंसे राजनीतिक उद्देश्य पूरे किये जा सकते हैं। परन्तु यह अहिंसक असहयोगकी योजनामें नहीं आता। यह समझनेके लिए दिमागपर बहुत जोर डालनेकी जरूरत नहीं है कि जबतक मजदूर देशकी राजनीतिक स्थितिको समझने न लगें और सबकी भलाईके लिए काम करनेको तैयार न हों, तबतक मजदूरोंका राजनीतिक उपयोग करना बहुत ही खतरनाक बात होगी। अभी इसकी उनसे अपेक्षा नहीं की जाती। और उस वक्ततक नहीं की जा सकती, जबतक वे अपनी खुदकी हालत अच्छे ढंगसे जीवन-यापन करने योग्य न बना लें। इसलिए सबसे बड़ी जो राजनीतिक सहायता मजदूर कर सकते हैं वह यही है कि वे अपनी स्थिति सुधार लें, अधिक जानकार हो जायें, अपने अधिकारोंका आग्रह रखें और जिस मालके तैयार करनेमें उनका महत्वपूर्ण हाथ होता है उसके उचित उपयोगकी भी मालिकोंसे माँग करें। इसलिए मजदूरोंका ठीक विकास अपना दर्जा बढ़ाकर आंशिक मालिकीका दर्जा प्राप्त करनेमें है। अतः अभी तो हड़तालें मजदूरोंकी हालतके सीधे सुधारके लिए ही होनी चाहिए और जब उनमें देशभक्तिकी वृत्ति पैदा हो जाये, तब अपने तैयार किये हुए मालकी कीमतोंके नियन्त्रणके लिए भी हड़ताल हो सकती है।

सफल हड़तालकी शर्तें सीधी-सादी हैं और वे जब पूरी हो जाती हैं तो हड़ताल कभी असफल नहीं होती :

  1. सन् १९२० में भारत-भरमें २०० हड़तालें हुई थीं, और १९२१ में कमसे-कम ४०० हड़ताल हुई।