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सामाजिक बहिष्कार


१. हडतालका कारण न्यायपूर्ण होना चाहिए।

२. हड़तालियोंको प्रायः एकमत होना चाहिए।

३. हड़ताल न करनेवालोंके विरुद्ध हिंसासे काम नहीं लेना चाहिए।

४. हड़तालियोंमें यह शक्ति होनी चाहिए कि संघोंके कोषका आश्रय लिये बिना वे हड़तालके दिनोंमें अपना पालन-पोषण कर सकें। इसके लिए उन्हें किसी उपयोगी और उत्पादक अस्थायी धन्धेमें लग जाना चाहिए।

५. जब हड़तालियोंकी जगह लेनेके लिए दूसरे मजदूर काफी हों, तब हड़ताल बेकार ठहरती है। उस सूरतमें यदि अन्यायपूर्ण व्यवहार हो, अपर्याप्त मजदूरी दी जाये या ऐसा ही और कोई कारण हो तो त्यागपत्र ही उपाय है।

६. उपर्युक्त सारी शर्तें पूरी न होनेपर भी सफल हड़तालें हुई हैं, परन्तु इससे तो इतना ही सिद्ध होता है कि मालिक कमजोर थे और उनका अन्तःकरण अपराधी था। हम अक्सर बुरे उदाहरणोंका अनुकरण करके भयंकर भूलें करते हैं। सबसे सुरक्षित बात यह है कि हम ऐसे उदाहरणोंकी नकल न करें जिनके बारेमें हम पूरी तरह कुछ नहीं जानते और उस अनुशासनका पालन करें जिसे हम सफलताके लिए अत्यावश्यक जानते और मानते हैं।

यदि हमें एक वर्षमें स्वराज्य प्राप्त करना है तो देशके प्रत्येक शुभ-चिन्तकका यह कर्त्तव्य है कि वह ऐसी कोई स्थिति न उत्पन्न करे जिससे हमारे महान राष्ट्रीय लक्ष्यकी प्राप्तिमें एक दिनका भी विलम्ब हो सकता हो।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १६-२-१९२१

 

१८२. सामाजिक बहिष्कार

असहयोग, आत्मशुद्धिका आन्दोलन है और इस कारण वह हमारी सब कमजोरियोंको सतहपर ला रहा है, यहाँतक कि हमारे सद्गुणोंके अतिरेकको भी। सामाजिक बहिष्कारकी प्रथा युगों पुरानी है। इसकी उत्पत्ति जाति प्रथाके साथ हुई थी। इस भयंकर दण्डका प्रयोग बड़े कारगर ढंगसे किया जाता था। यह इस विचारपर आधारित है कि समाज बहिष्कृत व्यक्तिको कोई भी आतिथ्य या सेवाएँ प्रदान करनेके लिए बाध्य नहीं है। प्रत्येक गाँव जब अपने-आपमें एक आत्मनिर्भर ईकाई था, और अवज्ञाकी घटनाएँ कम ही होती थीं तब इससे काम चल जाता था। किन्तु जब असहयोगके औचित्यके विषयमें मतभेद हो, जैसा कि आज है, जब कि उसके नये प्रयोगकी परीक्षा हो रही है, तब अल्पमतको बहुमतकी इच्छाके सामने झुकानेके लिए सामाजिक बहिष्कारका फौरी प्रयोग अक्षम्य हिंसाका ही एक प्रकार हो जाता है। यदि बहिष्कारपर आग्रह किया गया तो वह हमारे आन्दोलनको अवश्य ही नष्ट कर देगा। सामाजिक बहिष्कारका प्रयोग तभी होना चाहिए, और वह कारगर भी तभी होता है, जब बहिष्कृत व्यक्तिको वह बहिष्कार दण्ड न लगे, बल्कि वह उसे अनुशासनिक कार्रवाईके रूपमें ले।