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भाषण : गुजराँवालामें

कर्मसे शुद्ध रहना चाहिये। आप सभी स्वराज्य प्राप्त करना और खिलाफतके प्रश्नको सुलझाना चाहते हैं तथा पंजाबके अन्यायका प्रतिकार भी चाहते हैं। असहयोग इन सबके लिए रामबाण है। स्वराज्य प्राप्तिके दो साधन हैं——शान्तिपूर्ण ढंग। कांग्रेस, मुस्लिम लीग और सिख लीगने अहिंसात्मक असहयोगसे स्वराज्य प्राप्त करनेका निश्चय किया है। यदि आप एक वर्षमें स्वराज्य चाहते हैं तो आपको कालीकटके श्री याकूब हसनका[१] अनुसरण करना चाहिए। श्री याकूब हसनने लोगोंको हिंसाके लिए उत्तेजित करनेके बजाय स्वेच्छासे जेल जाना स्वीकार किया। सरकारने उनसे जमानत माँगी पर उन्होंने जमानत देनेसे इनकार कर दिया और छ: महीनोंके लिए जेल[२] चले गये। आप सबको जेल जानेके लिए तैयार रहना चाहिए। मैं किसी अपराधके दण्डस्वरूप न तो स्वयं जेल जानेको तैयार हूँ और न किसी औरको ऐसा करनेके लिए कहूँगा। पर स्वराज्यकी खातिर मैं जेल जानेके लिए भी तैयार हूँ, और चाहता हूँ कि आप लोग भी ऐसा ही करें।

स्वराज्य प्राप्तिकी एक और शर्त है जिसका सम्बन्ध विद्यार्थियोंसे है। यदि विद्यार्थी स्वराज्य चाहते हैं तो उन्हें स्कूल और कालेज छोड़ने ही पड़ेंगे, किन्तु ये असहयोगी विद्यार्थी उन दूसरे विद्यार्थियोंको तंग न करें जो अपनी पढ़ाई छोड़ना नहीं चाहते। पर पढ़ाई न छोड़नेवाले विद्यार्थियोंको भी असहयोगी विद्यार्थियोंकी हँसी नहीं उड़ानी चाहिए। जो व्यक्ति क्रुद्ध हो जाता है या कठोर भाषाका प्रयोग करता है वह अपनी ही शक्तिको क्षीण करता है। जो पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं उन्हें तंग न किया जाये। असहयोगी दूसरोंके समक्ष मात्र अपना प्रत्यक्ष उदाहरण प्रस्तुत करें। मैं आशा करता हूँ कि अगर मार्शल लॉ फिरसे लागू कर दिया गया तो आप पेटके बल रेंगना स्वीकार नहीं करेंगे। आप सब लोगोंने यूनियन जैक, जो बहुतसे निर्दोष देशभाइयोंको जेल तथा अण्डमान भेजनेवाली सरकारका प्रतीक है, के समक्ष झुककर अपने आपको अपमानित होने दिया है। यह भारतके लिए सदैव लज्जाका प्रसंग रहेगा। मैं आशा करता हूँ, अगर फिर कोई डायर उठ खड़ा हुआ तो लोग उसकी गोलियोंकी बौछारसे डर कर भागेंगे नहीं। वह गोलियोंसे पीठ नहीं, छाती बिधवानेका साहस दिखायेंगे। आप सब सिपाही बनना चाहते हैं; सिपाही रणक्षेत्रसे भागते नहीं हैं, अपने कर्त्तव्यका पालन करते हुए मृत्युका आलिंगन करते हैं। यदि फिरसे जलियाँवाला बाग-जैसा कोई काण्ड हो जाये तो आप गोलियोंकी बौछारके सामने मृत्युतक सीना ताने खड़े रहेंगे।

पहली शर्त तो यह है कि आपको शान्तिपूर्ण ढंगसे काम करना है। लेकिन इसके साथ ही आप निर्भय रहें। मुझे कई पत्र मिले हैं जिनमें अरब युवकोंके साहसका वर्णन है। सरकारने लालच देनेवाले कई सुझाव अरबोंके सामने रखे। उन्होंने रेतके

  1. जिन्होंने २० मई, १९२० को मद्रास विधान सभाकी सदस्यतासे त्यागपत्र दिया था।
  2. याकूब हसन और उनके तीन साथियोंको १७ फरवरी, १९२१ को सजा दी गई थी।