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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कारण अरबकी गर्म आबोहवाको ठण्डा करने और वहाँ रेलें आदि बनानेके वादे किये, बशर्ते कि अरब लोग उन्हें अपने देशमें शासन करने दें। पर अरबोंने विदेशी राज्यके बजाय अपनी तपती हुई रेतको ही ज्यादा पसन्द किया।

महात्माजीने कहा कि ड्यूक[१] यहाँ आये पर उन्होंने हमारे लिए क्या किया? उन्होंने न तो अपराधी अफसरोंको ही सजा दी और न डायरको पेंशन ही बन्द की है। मैं नहीं चाहता कि डायरपर मुकदमा चलाया जाये। पर मैं यह तो अवश्य ही चाहता हूँ कि भारतीय राजकोषमें से उसे एक पाई भी न दी जाये। डायर-जैसे आदमियोंको हमारे कोषमें से पेन्शन दी जा रही है। विद्यार्थियोंको चाहिए कि वे ऐसी सरकार द्वारा चलाये जा रहे स्कूलों और कालेजोंको छोड़ दें। अदालतोंका भी बहिष्कार करना चाहिए। विद्यार्थियोंके साथ-साथ वकीलोंको भी अपने कर्त्तव्यका भान होना चाहिए। यदि पंजाबी स्वतन्त्र होना चाहते हैं तो उन्हें सुखोंका त्याग करना सीखना होगा। यदि आप ऐसा करनेके लिए तैयार नहीं हैं तो स्वतन्त्रता प्राप्त करना असम्भव है।

स्वतन्त्रताकी प्राप्ति के लिए दूसरी शर्त है, विदेशी वस्तुओंका उपयोग न करना। विशेषतया विदेशी वस्त्रका। यदि आप स्वराज्यके लिए मरनेको तैयार हैं तो क्या आप विदेशी वस्त्रके बिना काम नहीं चला सकते? कुछ लोगोंने मुझे बताया है कि यदि पंजाबी विद्यार्थियोंसे चरखा अपनानेको कहा जायेगा तो वे भाग खड़े होंगे। मैं आपको यही बताना चाहता हूँ कि यदि आप देशकी आर्थिक स्थिति सुधारना चाहते हैं और प्रति वर्ष साठ करोड़ रुपयेकी बचत करना चाहते हैं तो आपको फौरन विदेशी वस्त्रोंका उपयोग बन्द करके चरखेको अपनाना चाहिए। मुझे बम्बईसे एक पत्र मिला, जिसमें लिखा है कि बम्बईके असहयोगी विद्यार्थियों द्वारा चरखा अपनाये जानेके परिणामस्वरूप उनके परिवारोंके सदस्य भी उनका अनुसरण कर रहे हैं। कुछ लोग हैं जो कताईको स्त्रियोंका काम मानते हैं। मेरी रायमें ऐसे विचारकी अभिव्यक्ति ही कायरताकी द्योतक है। यदि पंजाबके विद्यार्थी अर्थशास्त्रका सच्चा ज्ञान चाहते हैं तो उन्हें चरखेको अपनाना चाहिए क्योंकि उसीसे हमारा आर्थिक उद्धार हो सकता है।

महात्मा गांधीने आगे कहा कि पंजाबी युवक अपने माता-पिताको अंग्रेजीमें पत्र लिखते हैं, यह देखकर मुझे अत्यधिक क्लेश होता है। किसी विदेशी भाषाको अपनाकर हम कभी स्वतन्त्र नहीं हो सकते। मुझे यह भी बताया गया है कि पंजाबी युवक फिजूल खर्च होते जा रहे हैं। दादाभाई नौरोजीका अनुमान है कि हमारी वार्षिक आय प्रति व्यक्ति सिर्फ २६ रुपये है। ऐसी स्थितिमें हम किस प्रकार विलासमय जीवन व्यतित कर सकते हैं? भारतमें लगभग तीन करोड़ व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हें रोज एक बार भी भरपेट खाना नसीब नहीं होता। तब आप ऐशोआरामको जिन्दगी बसर करनेकी बात भी कैसे सोच सकते हैं? आपको सादगीका जीवन व्यतीत करना चाहिए और अपने भाइयोंकी सहायता करनी चाहिए। यदि एक लाख रुपये देकर

  1. ड्यूक ऑफ कनाॅट।