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क्रोध आनेपर क्या करना चाहिए?

पर रह जाऊँ तो काशी नहीं पहुँच सकता। लेकिन मेरा क्रोध किसी तरह कम नहीं होता था। लोग भी शान्त नहीं हो रहे थे। 'जय' की पुकारें बढ़ने लगीं। मैंने देखा कि प्रेम और घृणा दोनों ही में व्यक्ति अपने विवेकको खो बैठता है। मैंने अपना सिर पीट लिया लेकिन उसका कुछ असर न हुआ। मैंने एक बार फिर वैसा ही किया; इसपर एक व्यक्ति बोल उठा, "आप क्रोध करेंगे तो हमारी क्या गति होगी?" मुझे शर्म तो आई लेकिन मेरा क्रोध शान्त न हुआ। लोग शान्त होते तभी क्रोध उतरता। तीसरी बार फिर मैंने अपने सिरको पीटा। लोग घबराये। उन्होंने माफी माँगी, चुप हो गये और मुझे सो जानेके लिए कहा। एक सज्जनने[१] यह सब देखा, वे मेरे दुःखका अन्दाज लगा सके। इस तरह मुझे शान्ति मिली। बादके स्टेशनोंपर इन्हीं सज्जनने हमारी रक्षा की। जब-जब स्टेशन आता, तब वे लोगोंको समझाते, उनके 'दर्शन' करनेकी लालसाको दबाते और शान्ति स्थापित करते।

इस तरह अपना ही सिर पीट लेनेका अपने जीवनमें यह चौथा उदाहरण मुझे याद आता है। हर बारमें अपना सिर पीटकर ही शान्त हो सका हूँ। प्रेमसे भी व्यक्ति खीजने लगता है, इसका अनुभव तो मुझे अभी ही होने लगा है।

मेरे यह सब लिखनेका क्या कारण है, उसपर तो मैं अब आता हूँ। मनुष्यके सामने क्रोधित होनेके कारण उपस्थित होते ही रहते हैं। प्रत्येक अवसरपर क्रोधको रोकना उसका धर्म है और जैसे-जैसे वह अपने क्रोधको रोकता है वैसे-वैसे वह बहादुर बनता जाता है, उसका धीरज बढ़ता है, उसकी हिम्मत और आत्म-विश्वास बढ़ता है, उसकी बुद्धि निर्मल होती है। लेकिन जब वह क्रोधको न रोक सके तब वह अपने ऊपर ही प्रहार करे——यह क्रोधके निवारण करनेका सर्वोत्तम उपाय है। मैंने जिन चार प्रसंगोंका जिक्र किया है उनमें से तीन प्रसंगोंपर मुझे अपने स्नेही जनोंके उलटे कार्योंका दुःख था, और मैं उस दुःखको पी नहीं सका। शेष एक प्रसंग तो मेरे अपने ही एक अकार्यपर पश्चात्तापका था। मुझसे ऐसा पापाचरण बन पड़ा था कि मैं एकाएक तिलमिला उठा और अपने प्रति क्रोधसे जल उठा। उठकर मैंने अपने ऊपर सख्त प्रहार किया और उसके बाद ही मैं शान्त हो सका। चारों प्रसंगोंका असर मुझपर और मेरे आसपासके वातावरणपर अच्छा ही हुआ, ऐसा मैंने महसूस किया। क्रोधावेशमें जब मनुष्य दूसरे मनुष्यपर प्रहार करता है तब वह गिरता है और दूसरे मनुष्यके प्रति अपराधी ठहरता है। क्रोधसे पीड़ित होकर जब वह स्वयं दुःख सहन करता है तब वह पवित्र बनता है और दूसरोंपर भी उसका प्रभाव पवित्र ही पड़ता है।

हिन्दुस्तान इस समय इस राज्यके अत्याचारोंसे बहुत क्रुद्ध है। यदि हिन्दुस्तान स्वयं अपने पर प्रहार करेगा, स्वयं दुःख सहन करेगा, तो वह जीतेगा और सितम्बर माससे पहले स्वराज्य प्राप्त करेगा। किसीको यह उलटा तर्क प्रस्तुत नहीं करना चाहिए कि "मैंने जो उदाहरण दिये हैं उनमें तो सब मेरे प्रेमीजन थे, इसीसे वे उस आत्मप्रहारके मर्मको समझ सके; यहाँ तो अंग्रेज हैं, उनपर हमारे आत्मप्रहारका क्या असर होगा?"

  1. रामगोपाल, मऊकी खिलाफत समितिके सेक्रेटरी। महादेव देसाईने गांधीजीकी यात्राके अपने विवरणमें इनका उल्लेख किया है।