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पत्र : गंगाराम शर्माको

वेशोंके साथ समानताके आधारपर व्यवहार करने लगे। किन्तु फिर भी आज जब कि भारतमें विक्षोभ व्याप्त है और साम्राज्यमें उसका दर्जा अनिर्धारित ही है, आप जाँचपड़तालके लिए फीजो जाते हैं तो आप जान-बूझकर भारतके साथ कोई अन्याय नहीं करेंगे, यह मैं जानता हूँ।

अछूतोंके प्रति हिन्दुओंके व्यवहारके प्रश्नपर मैं आपसे पूर्णतः एकमत हूँ। इस बुराईका कोई भी औचित्य सिद्ध नहीं किया जा सकता। मैं आशा करता हूँ कि साम्राज्यमें भारतके साथ अछूतों-जैसा जो व्यवहार किया जाता है उसके मिटनेके साथ ही, हिन्दू धर्म द्वारा बरती जानेवाली अस्पृश्यता भी मिट जायेगी। मैं समझता हूँ कि हमने तथाकथित अछूतोंके साथ जो व्यवहार किया है, उसीका उचित दण्ड हमें मिला है कि साम्राज्यमें हमारी स्थिति अछूतों-जैसी है।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ७४६५) की फोटो नकलसे।

 

१८८. पत्र : गंगाराम शर्माको

लाहौर
२१ फरवरी, [१९२१][१]

प्रिय गंगारामजी,

आपके खिलाफ निम्नलिखित आरोप लगाये जाते हैं : १. आपने और श्री गौरीशंकरने गबन किया है।

२. आपके ज्यादातर स्कूल फर्जी हैं।

३. आपने एक फर्जी समिति बना रखी है।

४. आपने रुपये-पैसेका कोई लेखा-जोखा प्रकाशित नहीं किया है।

५. कहा जाता है कि जिन्हें आपके स्कूलोंसे लाभ पहुँचता है, आप उन लोगोंसे चन्दा वसूल नहीं करते।

६. आपपर गबनका आरोप लगाया गया था, और आप बरी हो गये थे। लोगोंका विश्वास है कि आरोप सर्वथा निराधार नहीं था।

७. आप एक औरत रखे हुए हैं, और उससे आपके बच्चे भी हैं।

उक्त आरोपोंपर विश्वास करनेका पर्याप्त कारण मालूम पड़ता है। यदि आप जाँच करवाना चाहते हों तो जिन कुछ मित्रोंके नाम आपने सुझायें हैं उन्हें मैं जाँच करनेके लिए कह दूँ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ७४४१) की फोटो-नकलसे।

  1. इस वर्षे २१ फरवरीको गांधीजी लाहौरमें थे।