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१८९. तार : मियाँ छोटानीको

२२ फरवरी, १९२१

यदि कमसे कम माँगोंपर दृढ़ रहें और हकीमजीके अधिकृत सचिव, सलाहकार तथा दुभाषियेके रूपमें अन्सारी आपके साथ जायें तो आप जा सकते हैं। डा॰ अन्सारी बृहस्पतिवारको वहाँ पहुँच रहे हैं। मेरे लिए पंजाब छोड़ना असम्भव[१] है। पूर्ण विचार-विमर्शके लिए आगामी शनिवारतक प्रस्थान स्थगित रखें।

[अंग्रेजीसे]

बॉम्बे सीट एब्स्ट्रैक्ट्स, १९२१, पृष्ठ २०८।

 

१९०. पत्र : सी॰ एफ॰ एन्ड्र्यूजको

लाहौर
२२ फरवरी, [१९२१][२]

प्रिय चार्ली,

तुम्हारे दो पत्र मिले। तुम्हें स्वस्थ हो जाना चाहिए।

सिखोंसे सम्बन्धित दुःखद घटनापर[३] ही मेरा सारा ध्यान लग रहा है। कृपया मुझे बताओ कि गुरुदेवकी घोषणाके बारेमें जो अंश 'यंग इंडिया' में प्रकाशित हुआ है, क्या वह सही है।

मैं अन्य सभी गतिविधियोंको स्थगित कर देना चाहता हूँ——कहनेका अर्थ यह है कि जबतक जनता अपनी शक्तिको नहीं पहचानती, कोई और कदम उठाना निष्फल ही होगा। यह ठीक उसी तरह है जैसा कि 'बाइबिल' में कहा गया है कि 'पहले तू अपने अन्दर ईश्वरके साम्राज्यका अनुभव कर'। अर्थात् इसके बिना कुछ नहीं होगा। यह तो मैं भी चाहूँगा कि हमारे युवक हिन्दुस्तानी सीखनेकी अपेक्षा देहातोंमें जायें। पर तुम्हें नहीं मालूम कि [ऐसा करनेमें] वे कितने असहाय हैं। उनमें से बहुत कम देहाती जीवन बिता सकते हैं। और इसीलिए मैं कहता हूँ कि १० मासके संक्रमणकालमें उन्हें चरखा कातने दो, उन्हें अपनी मातृभाषाके माध्यमसे अपने ज्ञानको आत्म-

  1. गांधीजी १५ फरवरी से ८ मार्च तक पंजाबमें रहे और १० मार्चको बम्बई पहुँचे।
  2. इस वर्ष २२ फरवरीको गांधीजी लाहौरमें थे।
  3. यह दुःखद घटना २० फरवरी, १९२१ को लाहौरके पास ननकाना साहबके गुरुद्वारेमें घटी थी; देखिए "भाषण : ननकाना साहबमें", ३–३–१९२१ तथा "सिख जागृति", १३-३-१९२१।