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भेंट: एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया के प्रतिनिधिसे

कपटके जालको अपने निर्भीकता और सत्य रूपी स्वर्ण-अस्त्र से काटना है, धोखा खाकर उसमें फँसना नहीं है।

[गुजराती से]

नवजीवन, २१-११-१९२०

१२. भेंट : एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया के प्रतिनिधिसे

दिल्ली

२१ नवम्बर, १९२०

यह पूछे जानेपर कि क्या आप समझते हैं कि सरकारसे कोई भी आर्थिक सहायता लिये बिना आप देशकी सारी शिक्षा-संस्थाएँ चला सकेंगे, श्री गांधीने उत्तर दिया:

हाँ, यदि में देशको अपने साथ लेकर चल सका। मैं समझता हूँ कि सभी मौजूदा संस्थाओंको बिना किसी सरकारी मददके चला सकना सर्वथा सम्भव है।

इस सवालके जवाबमें कि क्या असहयोगको अबतक जो सफलता प्राप्त हुई है, उससे उन्हें यह भरोसा होता है कि अन्तमें उसकी विजय होगी, श्री गांधीने कहा:

हाँ, अवश्य।

इस प्रश्नपर कि “क्या असहयोग और खिलाफत अलग-अलग आन्दोलन हैं या वे किसी विशिष्ट उद्देश्यकी पूर्तिके लिए एक-दूसरेमें मिला दिये गये हैं”, श्री गांधीने कहा:

देशने असहयोगको अपने उद्देश्य के साधनके रूपमें अपनाया है। उसे खिलाफत-सम्बन्धी अन्याय और पंजाबके अत्याचारोंके शोधन तथा स्वराज्यकी प्राप्तिके लिए अपनाया गया है।

जब श्री गांधीसे यह प्रश्न किया गया कि क्या जो-कुछ हो रहा है उस सबके बावजूद आप हमेशा की तरह अपने इस विश्वासपर वृढ़ हैं कि भारतको लगभग एक वर्षके अन्दर ही स्वशासन मिल जायेगा, तो उन्होंने कहा:

मैं अब भी मानता हूँ कि यदि भारत मुझे पर्याप्त सहयोग दे तो उसे एक सालके अन्दर स्वराज्य हासिल हो सकेगा, परन्तु यद्यपि में समझता हूँ कि सहयोग उतना नहीं है जितना होना चाहिए था, फिर भी वह इतना काफी है कि में निकट भविष्य में उसके बढ़ने की आशा कर सकता हूँ।

[अंग्रेजी से]

हिन्दू, २३-११-१९२०