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१३. पत्र: सी० एफ० एन्ड्रयूजको

अलीगढ़

२३ नवम्बर, [१९२०][१]

प्रिय चार्ली,[२]

मुझे तुम्हारे पत्र और तार मिले। क्या मैंने तुम्हारे साथ अन्याय किया है? मैंने तार देकर केवल यह सूचना देनी चाही थी कि मैं तुम्हें भेजनेकी कोशिश कर रहा हूँ――मैंने यह नहीं कहा था कि तुमने पद स्वीकार कर लिया है। और मैने जो कहा, अपनी और तुम्हारी बातचीतके [३]आधारपर कहा। जो भी हो, किसी तरहका दबाव तुमपर नहीं डाला जायेगा। तुम मुस्लिम विश्वविद्यालयके लिए केवल उतना ही करना, जो तुम कर सकते हो।

हाँ, मैं अंग्रेजोंसे देशके सम्बन्धको एक शुद्ध आधारपर स्थापित करनेकी जरूरत महसूस करता हूँ। आज वह जैसा है उससे तो विरक्ति ही होती है। परन्तु मैं अभी-तक यह नहीं तय कर पाया हूँ कि उसे, चाहे जो हो, समाप्त ही कर देना चाहिए। हो सकता है कि अंग्रेजोंका स्वभाव काली और भूरी जातियोंके साथ पूर्ण समानताका दर्जा स्वीकार नहीं कर सके। तब तो अंग्रेजोंको भारतसे वापस ही भेजना होगा। परन्तु एक गौरवपूर्ण समानताकी सम्भावना है, यह विचार में त्याग नहीं सकता। किन्तु यदि इस बातका यथासम्भव स्पष्ट प्रमाण मिल जाये कि धर्मके प्रथम सिद्धान्त अर्थात् मानव-मानवके बीच भाईचारेके सिद्धान्तको समझने में अंग्रेज बुरी तरह असफल हो गये हैं, तो यह सम्बन्ध अवश्य समाप्त हो जाना चाहिए।

बड़ो दादाका[४]पत्र मुझे नहीं मिला। शायद आश्रम पहुँचा हो या मुझे दिल्ली पहुँचनेपर मिले। मैंने तुम्हें समयपर तार दे दिया था।

मैं डा० दत्तको तारसे कोई सन्देश नहीं भेज सकता; परन्तु यदि अभी समय हो तो मैं उन्हें कुछ लिखने की कोशिश करूँगा।

मुझे पूरी आशा है कि तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक चल रहा है।

  1. १९२० में २३ नवम्बरको गांधीजी अलीगढ़में थे जहाँ वे खिलाफत समितिकी एक सभामें शरीक होने गये थे।<
  2. चार्ल्स फेयर एन्ड्रयूज (१८७१-१९४०); अंग्रेज मिशनरी, लेखक व शिक्षाशास्त्री, जिन्होंने विश्वभारती विश्वविद्यालयके कार्य में बहुत दिलचस्पी ली; कई वर्षोंतक भारतीयोंके साथ काम किया जिससे उन्हें ‘दीनबन्धु’ की उपाधि मिली। वे गांधीजीके घनिष्ठ मित्र थे।
  3. अक्तूवर १९२० में एन्ड्यूजकी गुजरात यात्रा के दौरान जब वे गांधीजी के साथ कुछ दिनके लिए रहे थे।
  4. द्विजेन्द्रनाथ ठाकुर; रवीन्द्रनाथ ठाकुरके बड़े भाई; गांधीजीकी असहयोग योजनाके सिद्धान्ततः प्रशंसक।