पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/४१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


कुछ बातें हैं जो सभीपर लागू होती हैं। सबसे अधिक समर्थ वस्तु है स्वदेशी। हर घरमें चरखा अवश्य होना चाहिए, और हर गाँवको एक महीनेसे कम समयमें अपने आपको संगठित कर लेना चाहिए तथा कपड़ेके मामलेमें आत्मनिर्भर हो जाना चाहिए। जरा सोचिए कि इस मौन क्रान्तिका क्या अर्थ है, और तब आपको मेरी तरह यह विश्वास करनेमें कोई कठिनाई नहीं होगी कि स्वदेशी ही स्वराज्य है, स्वधर्म है।

प्रत्येक पुरुष और स्त्री तिलक स्वराज्य कोषमें कुछ धन दे सकता है——चाहे एक पैसा ही क्यों न दे। और हमें आन्दोलनके लिए धनकी व्यवस्थाकी कोई चिन्ता नहीं करनी चाहिए। सभी स्त्री-पुरुष एक वर्षके लिए सभी विलासकी वस्तुओं, शरीरसज्जाके अलंकारों और सभी मादक द्रव्योंका परित्याग कर सकते हैं। तब हमारे पास पैसा तो होगा ही; इसका यह मतलब भी होगा कि हम इसके साथ ही अनेक विदेशी वस्तुओंका बहिष्कार भी कर रहे हैं। हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति, हमारा स्वराज्य इस बातपर निर्भर नहीं कि हम अपनी आवश्यकताएँ कितनी बढ़ाते हैं——सुख-भोगके प्रति कितने आसक्त होते हैं; वे तो इस बातपर निर्भर हैं कि हम अपनी आवश्यकताएँ कितनी कम करते हैं, हममें कितना आत्म-वर्जन है।

हिन्दू-मुस्लिम एकताके बिना, तथा अस्पृश्यताके सर्पको मारे बिना हम कुछ नहीं कर सकते। अस्पृश्यता वह विष है, जो हिन्दू समाजके मर्मको खोखला कर रहा है। वर्णाश्रम ऊँच-नीचका धर्म नहीं है। भगवान्‌का कोई भी भक्त किसी दूसरे आदमीको अपनेसे नीचा नहीं समझ सकता। उसे तो प्रत्येक मनुष्यको अपना सगा भाई मानना चाहिए। यही प्रत्येक धर्मका आधारभूत सिद्धान्त है।

यदि यह धार्मिक युद्ध है तो पाठकोंको यह विश्वास दिलानेके लिए तर्क देनेकी आवश्यकता नहीं है कि आत्म-वर्जन उसकी सर्वोच्च कसौटी होनी चाहिए। धार्मिकताके बिना खिलाफतको बचाया नहीं जा सकता, और न पंजाबके लोगोंके प्रति हुए अन्यायका निराकरण ही हो सकता है। धार्मिकताका अर्थ है हृदय-परिवर्तन——राजनीतिकी भाषामें कहें तो दृष्टिकोणका बदलना। और ऐसा परिवर्तन एक क्षणमें आ सकता है। मेरा विश्वास है कि भारत उस परिवर्तनके लिए तैयार है।

तो हम इन बातोंपर अपना ध्यान केन्द्रित करें:

(१) अहिंसाकी भावना विकसित करना।

(२) प्रत्येक गाँवमें कांग्रेस संगठनकी स्थापना करना।

(३) प्रत्येक घरमें चरखेका प्रवेश कराना, और अपनी आवश्यकताका सारा कपड़ा गाँवके बुनकरोंसे तैयार करवाना।

(४) जितना पैसा सम्भव हो, इकट्ठा करना।

(५) हिन्दू-मुस्लिम एकताको बढ़ाना; और

(६) हिन्दू-धर्मको अस्पृश्यताके शापसे मुक्त कराना तथा मादक द्रव्योंका त्याग करके अपनेको अन्य प्रकारसे शुद्ध बनाना।