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१९७. उलटा तर्क

मेरे पास गुमनाम पत्र आते ही रहते हैं। सभीमें अभीतक अपना नाम प्रगट करके लिखनेकी हिम्मत नहीं आई है। अखबारमें अपने नामको जाहिर न करना एक बात है। लेकिन सम्पादकको भी अपना नाम न भेजना और पत्र प्रकाशित करवा लेनेकी उम्मीद करना दूसरी बात है। मेरे पास अभी ऐसे दो लेख पड़े हैं। एक लेखमें गुजरात कालेजके एक विद्यार्थीने असहयोगियोंपर कुछ आक्षेप किये हैं। उसे तो मैं नहीं छापता। दूसरा लेख किसी बहनका है; उसमें भी आक्षेप लगाये गये हैं। लेकिन लेख स्त्रीका है, इसलिए और आक्षेप जानने योग्य होनेके कारण मैं उसे यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ।

यह गुमनाम बहन लिखती हैं :

अंग्रेजी शासनके जुल्मी अधिकारियोंके पंजाबपर ढाए गये जुल्मोंसे मेरे हृदयको ठेस पहुँची है और मैं चार महीनोंसे नौकरी छोड़नेका विचार करती हूँ। लेकिन समय ज्यों-ज्यों बीत रहा है मैं देख रही हूँ कि नौकरी छोड़नेके सम्बन्धमें मेरी आतुरता दिन-प्रतिदिन मन्द पड़ती जा रही है। उसका कारण यह है कि जुल्मी अधिकारियोंके कृत्योंसे दिलको जितनी ठेस पहुँची है, उतनी ही आपके नामसे काम-काज करनेवाले अप्रामाणिक नेताओंके कृत्योंसे भी पहुँची है। ...कुछ ऐसा उपाय किया जाना चाहिए जिससे आपके नामपर ऐसे दम्भी लोग लाभ न उठा पायें और केवल सत्यकी ही विजय हो। ... क्या यह अनु- चित नहीं है कि जहाँ-जहाँ नगरपालिकाके स्कूल हों वहाँ-वहाँ राष्ट्रीय स्कूलोंकी स्थापना और बालकोंकी संख्यामें वृद्धि करनेके प्रयत्न किये जायें? नडियादके समान ही अन्य नगरपालिकाओंके स्कूलोंको भी राष्ट्रीय स्कूलोंमें परिवर्तित क्यों न किया जाये?

इस बहनने उलटे तर्कका प्रयोग किया है। यदि उन्हें सरकारी नौकरी छोड़नेकी 'लगन' लगी हुई हो तो वह असहयोगियोंकी अप्रामाणिकताको देखकर ठण्डी होनेके बजाय और भी बढ़नी चाहिए। प्रामाणिक व्यक्तिका उत्साह मन्द हो जाये और वह सरकारी नौकरीसे चिपका रहे तो इससे असहयोगीकी अप्रामाणिकता कम नहीं होगी। जो लोग सरकारी नौकरी छोड़ें अथवा दूसरी तरहसे असहयोग करें वे ऐसा असहयोगियोंपर मेहरबानीके रूपमें नहीं बल्कि असहयोगको धर्म समझकर कर्त्तव्यके ही रूपमें करें। अगर सब असहयोगी पापी हों तो भी क्या? अथवा ऐसा हो तब तो इक्के-दुक्के पुण्यवान् महा-असहयोगीको और भी प्रचंड असहयोग करना चाहिए। यदि उपर्युक्त बहनको लगी 'लगन' सच्ची है तब तो उसका परिणाम यही होना चाहिए।

सभी असहयोगी शुद्ध होते तब तो स्वराज्य कभीका मिल गया होता। बहुत समयसे हमपर जो मैल चढ़ा हुआ है, उसके एकाएक दूर होनेकी आशा रखना ही