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रावलपिण्डीकी बहनें

गलत है। असहयोग करके इस मैली सरकारसे हम दूर हदें, तो उतना मैल तो कटेगा? शराब पीनेवाला, शराब न पीनेवाले व्यक्तिके दूसरे दोषोंको देखकर स्वयं शराबके व्यसनसे चिपका रहे, यह तो कोई ठीक बात नहीं है। सही तो यह है कि दूसरे चाहे जो भी करें फिर भी वह शराब छोड़कर पापमुक्त हो और दूसरोंको उनके दूसरे पापोंसे छुड़ानेका प्रयत्न करें।

इसके अलावा, इस बनने नगरपालिकाके स्कूलोंके सम्बन्धमें जो कुछ लिखा है यदि अप्रामाणिकतासे उसका यही मतलब है तो यह उसकी नामसझी ही कही जायेगी। जहाँ नगरपालिका अपने स्कूलोंको राष्ट्रीय नहीं बनाती वहीं, अगर सम्भव हो तो, नये स्कूलोंकी स्थापना करके, नगरपालिकाके स्कूलोंसे बच्चोंको निकालनेका प्रयत्न होना ही चाहिए। यह तो असहयोगीका स्पष्ट धर्म है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २७-२-१९२१

 

१९८. रावलपिण्डीकी बहनें

मैं बंगालमें और दूसरी जगहोंमें स्वराज्यवादियोंके लिए बहनोंके आशीर्वाद प्राप्त कर रहा हूँ। मैंने नवयुवतियोंको अपने सारे आभूषण देते हुए देखा है। कलतक जो फूल-से वस्त्र पहनती थी उन्हें आज मैं खादीकी साड़ी पहनते हुए देख रहा हूँ। और चूँकि स्थिति आम तौरपर ऐसी हो गई है इसलिए मुझे यह सोचना पड़ रहा है कि मैं किन अनुभवोंकी चर्चा करूँ और किनको छोड़ दूँ।

रावलपिण्डी मुख्यत: सिपाहियोंका शहर माना जाता है। वहाँ धनिक लोग रहते हैं। लेकिन रावलपिण्डीमें मैंने बहनोंमें जो उत्साह देखा वह मेरे लिए कल्पनातीत था। स्त्रियोंकी सभा सबेरे ग्यारह[१] बजे थी। यह सभा खुली जगहमें एक बगीचेमें आयोजित की गई थी। उस समय उसमें पुरुषोंके आनेकी मनाही थी। बहनें एक मंचके आसपास बैठ गई थीं। मेरे साथ लालाजी[२] थे। बहननों अपने ही रचे हुए दो गीत गाये। गीत गानेमें बहुतेरी बहनोंने भाग लिया। एक गीत अमृतसरसे और दूसरा स्वदेशीसे सम्बन्धित था। हम चरखा चलायेंगी, हम बेकार नहीं बैठेंगी, हम चरखा चलाते हुए प्रभुका नाम लेंगी। हम महीन वस्त्र छोड़कर खादी पहनेंगी। हम बढ़ई, लुहार और मोचीको प्रोत्साहन देंगी और देशको सुखी बनायेंगी——ऐसा उस गीतका भावार्थ था। मुख्य गानेवाली बहनें बीसेक वर्षकी उम्रवाली कुछ लड़कियाँ थी। उन्होंने श्वेत वस्त्र ही पहन रखे थे। वे धनाढ्य घरोंकी थीं, लेकिन उनके हाथोंमें अँगूठीके सिवाय मैंने और कोई आभूषण नहीं देखा। पंजाबमें कुमारी अथवा सधवा चूड़ी

  1. २० फरवरी, १९२१ को।
  2. लाला लाजपतराय।