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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अवश्य पहने, ऐसा खास रिवाज नहीं है। बहनें भेंट देनेके लिए सूत अथवा खादी भी लाई थीं।

उनके उस प्रेममय कोलाहलमें हमारे भाषण तो कम ही सुने गये, सुननेकी जरूरत भी नहीं थी, क्योंकि हमारी याचना उनके हृदयमें अंकित थी। रावण-राज्यका नाश करके राम-राज्यकी स्थापना करनी है। उसको स्थापित करनेका मार्ग सीताका मार्ग है। सीताजीने रावणकी भेजी हुई मिठाइयों, आभूषणों आदिका त्याग किया था; वैसे ही हिन्दुस्तान की पुत्रियोंको भी करना है। जबतक गरीबोंकी भूख नहीं मिटती तबतक उनका हृदय दुआ नहीं देगा। यह भूख चरखेसे ही मिट सकती है। पवित्र स्त्रियोंका आशीर्वाद ही फलीभूत होता है। इसलिए स्त्रियोंको अधिक पवित्र, सादा और अच्छा बनना होगा। ऐसी सामान्य बातें तो उनके हृदयमें अंकित हो चुकी हैं। तो फिर उन्हें और क्या सुनना था? उन्होंने तो रुपये और गहने निकालने शुरू कर दिये। उस श्वेत-वस्त्र-धारिणी बहनको अपनी अँगूठीके प्रति अरुचि उत्पन्न हुई। उसने उसे निकालनेकी कोशिश की पर वह किसी तरह निकलती ही न थी। अन्तमें अँगूठी निकालकर मेरी झोलीमें डालनेपर ही उसे शान्ति मिली। बहनें हमें घेर कर हमारे चारों ओर इकट्ठी हो गयीं। कोई अपने आँचलमें पैसे और गहनें इकट्ठे करके ले आई। कोई बहन इकट्ठे किये हुये पैसेको दूरसे ऐसी युक्तिसे फेंकती थी कि दूसरी बहन उसे अपने आँचलमें ले लेती थी। इस तरह एक घण्टेतक यह कोलाहल चलता रहा और रुपयों तथा नोटोंकी वर्षा होती रही।

ये बहनें जानती थीं कि मुझे पैसा किसलिए चाहिए? स्वराज्य क्या है, खिलाफत क्या है, पंजाबपर क्या-क्या अत्याचार हुए हैं——इन सबसे वे अच्छी तरह परिचित थीं। वे इसी कारण पैसा दे रही थीं। इसलिए मुझे यह विश्वास क्यों न हो कि स्वराज्य एक वर्षमें मिल सकता है? सच तो यह है और मैं मानता हूँ कि स्वराज्य किसी एक व्यक्तिके प्रयत्नोंसे मिलनेवाला नहीं है। यदि हिन्दुस्तानके पुण्यका उदय हो चुका होगा, वह बिलकुल पुण्यके ही रास्तेपर चल रहा होगा तो स्वराज्य मिलकर ही रहेगा। उसकी शर्तें स्पष्ट हैं, फिर भी मैंने उन्हें और भी साफ शब्दोंमें समझा दिया है। वे हैं :

(१) शान्ति, (२) स्वदेशी (चरखा और खादीका प्रचार), (३) परस्पर सहयोग, (४) आवश्यक धनका दान, और (५) देशके प्रत्येक हिस्सेमें कांग्रेसके संविधानके अनुसार कामकी व्यवस्था।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २७-२-१९२१