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१९९. टिप्पणियाँ

दमनका नंगा नाच

बिहारमें किये गये दमनके विषयमें मैंने अलगसे एक लेख लिखा है। उसे लिखनेके बाद मैंने अखबारोंमें बिहारके बारेमें और भी बहुत-सी खबरें देखीं। अगर बिहारमें जलियाँवाला बागकी पुनरावृत्ति नहीं हो रही है तो उसका कारण यह नहीं होगा कि अधिकारियोंने लोगोंको उत्तेजित करनेमें कुछ कसर उठा रखी है; उसका श्रेय तो दरअसल बिहारियोंके अनुकरणीय आत्मसंयमको है। कारण, अधिकारी किसी भोली, अनजान भीड़के बारेमें यह कह दें, और वैसा मानें भी कि वह अमुक आदेशको तोड़ कर ही जमा हुई है, तो उन्हें उस भीड़पर जिसे अपने ऊपर आनेवाली इस आपत्तिका गुमान ही नहीं हो सकता, गोली चलानेसे कौन रोक सकता है! [बिहारकी आज जो हालत है उसमें] ऐसी कोई भयंकर चीज बड़ी आसानीसे हो सकती है, और फिर सरकारी इतिहासकार द्वारा लिखे इतिहासमें उसका उल्लेख मात्र "एक निर्णयकी भूल" कहकर कर दिया जायेगा।

दमन संयुक्त प्रान्तमें भी जोर पकड़ता जा रहा है। सार्वजनिक वक्ताओंपर नियन्त्रण रखा जा रहा है।

कालीकटके मजिस्ट्रेटने श्री याकूब हसन और उनके साथियोंको कारावास देकर खूब नाम कमाया ही है।[१]

जो-कुछ हो रहा है, उसकी आशंका तो थी ही। स्वराज्य सस्तेमें नहीं मिल सकता है और न मिलना ही चाहिए। ऐसा क्यों न हो कि बूढ़े, जवान सभी जेल जायें? जब हम सब साथ-साथ एक-सा ही कष्ट सहेंगे तो वह कष्ट हमें एकताके एक ऐसे सूत्रमें बाँध देगा, जो कभी नहीं टूटेगा। ज्यों-ज्यों असहयोग अपना असर दिखाना शुरू करेगा, अधिकारी अपने आपेसे बाहर होते जायेंगे।

कारण, यह स्पष्ट है कि उनमें अब भी पश्चात्ताप करनेकी कोई सच्ची इच्छा उत्पन्न नहीं हुई है। ड्यूक महोदयने[२] बड़ी मीठी और रुचनेवाली बातें कही हैं, और बताते हैं, जब वे ये सौहार्दकी बातें कह रहे थे, उस समय स्पष्ट देखा जा सकता था कि वे विह्वल हो उठे हैं। कौंसिलने भी १९१९ के मनहूस अप्रैल मासकी घटनाओंपर दुःख प्रकट करते हुए एक प्रस्ताव[३] पास किया है; लेकिन जिस समय ये छूँछी भावनाएँ व्यक्त की जा रही थीं, लगभग उसी समय, मानो हमारा मजाक उड़ानेके लिए,

  1. देखिए "भाषण : गुजराँवालामें", १९-२-१९२१ ।
  2. ड्यूक ऑफ कनॉट।
  3. कौंसिल ऑफ स्टेटमें १५-२-१९२१ को यह प्रस्ताव श्री जमनादास द्वारकादासने पेश किया था। प्रस्तावक द्वारा प्रस्तावमें से अपराधी अधिकारियोंको दण्डित करनेसे सम्बन्धित धारा ३ वापस ले लिये जानेपर वह पास कर दिया गया था।