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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विभिन्न प्रान्तोंके मजिस्ट्रेट दमनका कुचक्र रच रहे थे। शाब्दिक पश्चात्तापके अर्थ क्या होते हैं, इसका यह एक जीता-जागता उदाहरण है।

भारतको आज उदारता और अनुग्रहकी बातोंकी भूख नहीं है, और सच पूछिए तो अनुग्रहपूर्ण कार्योंकी भी नहीं। उसे भूख है न्यायकी, और सिर्फ न्यायकी। उसे भारतीय खजानसे सर माइकेल ओ'डायर और जनरल डायरको पेंशन देना बन्द करनेकी माँग करनेका हक है। जिन अधिकारियोंने दुर्व्यवहार किया है, वे जबतक ऊँचे-ऊँचे पदोंपर बने हुए हैं तबतक वह सन्तुष्ट नहीं हो सकता।

लेकिन जबतक यह बुनियादी न्याय प्राप्त नहीं होता तबतक भारत अपनी असहयोगकी लड़ाई जारी रखेगा और तबतक सरकार भी अपनी दमनकी नीतिपर कायम ही रहेगी।

हम क्या करें

हमें मानना चाहिए कि दमन एक ऐसी कसौटी है, जिसपर हमारी धातु परखी जानेवाली है। अगर हम अपने मुँहसे 'उफ्' तक निकाले बिना आत्म-संयमपर दृढ़ रहकर इस कसौटीपर खरे उतरते हैं तो उससे हमारा हित होगा, हम अपने लक्ष्यके निकटतर पहुँचेंगे। अगर हममें सच्ची लगन है तो हम अपना संयम खोये बिना इस अग्नि-परीक्षासे सही-सलामत गुजर जायेंगे। आखिरकार हम भी तो सरकारके साथ सहयोग करनेसे इनकार करके उसकी धीरजकी परीक्षा ही ले रहे हैं, लेकिन इसकी आत्मरक्षाकी सहज प्रवृत्ति इसे एक सीमातक शान्त रखती है। लेकिन जब वह सीमा पार हो जाती है, तो वह अपना सन्तुलन खो बैठती है। आम तौरपर हमपर भी इसकी यही प्रतिक्रिया होती है; हम भी क्रुद्ध हो उठते हैं, और हमारी इस कमजोरीसे सरकारको बल मिलता है। अहिंता हमें यह सिखाती है कि हम अपने ऊपर सरकारके कोधका कोई असर नहीं होने दें। और अगर हम इस सीखको अपने आचरणमें उतारेंगे तो सरकारको हार खानी ही होगी। जब हम दमनके प्रति कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखायेंगे तो उसकी धार कुंठित हो जायेगी——ठीक उसी प्रकार जैसे अगर कोई हवामें मुक्का मारे तो कोई अवरोध न पाकर हाथ झटका खा जाता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २—३—१९२१