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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आये और वहाँ पता चला कि वह भयंकर समाचार सच है। मैंने अपना मुलतान जानेका कार्यक्रम रद कर दिया और अधिक समाचार इकट्ठे करनेके लिए रुका रहा। दूसरे दिन मैं लायलपुरके लिए रवाना हुआ और वहाँसे श्रीमें आयोजित सिख दीवानमें[१] गया। मुझे पता चला कि दाह-संस्कार[२] उसी दिन होनेको है। जिस समय यह समाचार मिला उस वक्त वहाँ पहुँचना सम्भव नहीं था। और फिर मुझे अमृतसर और लखनऊमें बहुत जरूरी काम था। इसलिए मैं यह तीर्थयात्रा पहले नहीं कर सका। इस बीच इस बलिदानके बारेमें मैंने बहुत-कुछ सुना है।

शायद यह कहनेकी जरूरत नहीं है कि मुझे आपके ही समान दुख हुआ है। मेरा स्वभाव ही ऐसा है कि दूसरोंके कष्टोंसे मैं स्वयं दुखी होता हूँ। यदि मैं यह न मानता कि दुखोंका अन्त करनेके लिए आत्महत्या कोई निदान नहीं है, तो अपनी जिन्दगीका अन्त कबका कर चुका होता। इस तरह जब मैंने ननकाना साहबकी दुर्घटनाके बारेमें सुना तो मेरे मनमें घटनाग्रस्त व्यक्तियोंके पास एकदम पहुँचनेकी इच्छा हुई। अब भी जो रह गये हैं, उनके प्रति मैं सहानुभूतिका प्रदर्शन करनेके सिवा और क्या कर सकता हूँ?

पर मैं इतना बता दूँ कि अभीतक मैं यह निर्णय नहीं कर पाया हूँ कि आखिरकार हुआ क्या? इस बातपर तो विश्वास ही नहीं होता कि अकाली दलके हाथों एक भी आदमी नहीं मरा। क्या यह सच है कि इन बहादुर आदमियोंने, जो कृपाणों और फरसोंसे सुसज्जित थे, आत्मरक्षाके लिए एक भी वार नहीं किया। यदि ऐसा ही हुआ हो तब तो यह ऐसी घटना है जो सारी दुनियाकी चेतनाको झझकोर सकती है।

मेरे सामने तीन सम्भावनाएँ हैं।

एक तो यह कि अकाली दल गुरुद्वारेपर कब्जा करने आया था। इसी काममें उसे अपनी जानसे हाथ धोना पड़ा। कोई भी व्यक्ति यह नहीं मानेगा कि कब्जा करनेके लिए आकर दलने कोई अपराध किया है। आप यह मानते हैं कि महन्तपर विश्वास नहीं किया जा सकता। आप लोग अपने धर्मका कट्टरतासे पालन करनेवाले हैं। इसलिए गुरुद्वारेको अपने हाथमें लेनेकी इच्छा स्वाभाविक है। लेकिन बल प्रयोगसे कब्जा करनेके प्रयत्नका समर्थन तो मैं किसी प्रकार भी नहीं कर सकता। मेरे मतानुसार किसी दुष्टके प्रति भी हिंसाका प्रयोग या प्रदर्शन वर्जित है। मैं जानता हूँ कि आपके और मेरे मतमें अन्तर है। मैं आशा करता हूँ कि यदि कोई मुझे या मेरे किसी सम्बन्धीको हानि पहुँचायेगा तो मैं उसे क्षमा कर सकूँगा। मैं ईश्वरसे सदैव यही प्रार्थना करता हूँ कि यदि कभी ऐसा अवसर आये तो वह मुझे ऐसे अपराधीको क्षमा करनेका बल दे। अगर यह प्रमाणित कर भी दिया जाये कि शहीद बल-प्रयोगसे कब्जा करने आये थे तो भी इतिहास उन्हें दोषी नहीं ठहरायेगा।

दूसरी सम्भावना यह है कि यह दल सिर्फ पूजा करनेके लिए आया और उसे अपनी रक्षाका अवसर दिये बिना मौतके घाट उतार दिया गया।

  1. यह २५ फरवरी, १९२१ को हुआ था।
  2. ननकाना साहबमें मारे गये व्यक्तियोंका।