पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/४३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०५
सन्देश : ननकाना साहबकी दुःखद घटनापर सिखोंको


भारत आज इस भयंकर काण्डपर आँसू बहा रहा है। मुझे यह देखकर लज्जा आती है कि आज भी ऐसे लोग हैं जो, भारतके बेटोंने उस पवित्र मन्दिरमें जैसा अपराध किया, वैसा अपराध कर सकते हैं। यह अभी नहीं मालूम कि अकालियोंका दल मन्दिरमें क्यों गया था, अथवा उन्होंने खुनियोंका प्रतिरोध किया या नहीं। उन सबके पास अपनी-अपनी कृपाण थी और अधिकांशके पास फरसे थे। इस हालतमें वहाँ क्या-कुछ हुआ होगा इसकी तीन सम्भावनाएँ हैं।

(१) अकालियोंका दल बलप्रयोग करके मन्दिरपर कब्जा करनेके लिए वहाँ गया लेकिन विपक्षी दलकी अधिक शक्तिसे पराभूत हुआ और बहादुरीके साथ लड़ता हुआ मारा गया।

(२) ये लोग वहाँ मात्र-पूजा करनेके लिए गये और गुरुद्वारेपर कब्जा करनेका उनका कोई इरादा नहीं था। वे अपना बचाव करनेमें असमर्थ रहे और छलपूर्वक मार दिये गये।

(३) ये लोग, जैसा कि दूसरी सम्भावनायें कहा गया है, पूजा करनेके लिए ही गये, और उनपर निर्दयतापूर्वक आक्रमण कर दिया गया; किन्तु यद्यपि वे अपना बचाव कर सकते थे, उन्होंने जवाबमें शस्त्र नहीं उठाया और स्वेच्छासे मृत्युका वरण किया, क्योंकि उन्होंने व्रत लिया था कि गुरुद्वारा आन्दोलनमें[१] वे हिंसाका प्रयोग नहीं करेंगे। जिन लोगोंने मुझे इस सम्बन्धमें जानकारी दी और जो केवल सुनी-सुनाई बात ही कह सकते हैं, उनका कहना है कि इन लोगोंने, जैसा कि तीसरी सम्भावनायें बताया गया है, उसी तरह गुरुद्वारेमें जाकर मृत्युका वरण किया। यदि बात ऐसी हो, तो इन शहीदोंने ऊँची-ऊँची कोटिका साहस और आत्मत्याग दिखाया है। और इस साहस तथा आत्मत्यागपर समस्त सिख समाज, सारे भारत और सारी दुनियाको गर्व हो सकता है। यह परम सन्तोषकी बात है कि जिन सिखोंसे मैंने इन सम्भावनाओंकी चर्चा की है, वे सब इस अन्तिम सम्भावनामें ही विश्वास करते हैं।

अगर हम दूसरी सम्भावनाको मानें तब भी आत्मरक्षा करनेवालोंकी बहादुरी उतनी ही शानदार समझी जायेगी जितनी कि तीसरी सम्भावनामें अनुमानित बहादुरी।

अगर पहली सम्भावना ही सच हो तो उन्होंने बहादुरी तो बहुत दिखाई, लेकिन उनका कार्य, अर्थात् जोर-जबरदस्तीसे गुरुद्वारेपर कब्जा करनेका उनका प्रयत्न नैतिक दृष्टिसे अवश्य ही विवादका विषय है। साधारण दृष्टिकोणसे देखें तो अकाली लोग अनधिकार प्रवेश करनेकी कोशिश कर रहे थे, जिन्हें मार भगानेके लिए गुरुद्वारेपर काबिज़ लोगोंको पूरा बल प्रयोग करनेका कानूनी अधिकार था।

अकाली लोग शुद्धिवादी हैं। गुरुद्वारोंमें जो बुराइयाँ घुस गई हैं, उन्हें दूर करनेके लिए वे अधीर हो रहे हैं। उनका आग्रह है कि सब गुरुद्वारोंमें पूजाकी एक ही विधि हो। यह आन्दोलन कुछ वर्षोंसे चल रहा है। जबसे असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ है, सहयोगवादी और असहयोगवादी, दोनों प्रकारके सिख, जहाँतक गुरुद्वारा

 
  1. यह आन्दोलन अकाली सिखोंने गुरुद्वारोंको महन्तोंके हाथोंसे लेनेके लिए शुरू किया था। इन महन्तोंको सरकारका संरक्षण प्राप्त था।