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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आन्दोलनका सम्बन्ध है, मिलकर काम कर रहे हैं। और अगर अन्तमें यही पाया जाये कि अकाली दल ननकाना साहबमें बलका प्रयोग करके एक ऐसे महन्तको पदच्युत करने गया था जिसने अपनी थातीका दुरुपयोग किया था, तब भी इतिहास इस बलिदानको अत्यन्त प्रशंसनीय ढंगकी शहादत ही कहेगा। यदि हम उच्चतम मापदण्डसे तथा अहिंसात्मक असहयोगके मापदण्डसे विचार करें तो पहली सम्भावनाके सच निकलनेपर यही माना जायेगा कि कब्जा लेनेके लिए गुरुद्वारेमें प्रवेश करनेका कार्य हिंसासे दूषित था और इसलिए निन्दाके योग्य है। किन्तु सिर्फ इसी कारणसे कि अकालियोंकी कार्रवाई दूषित थी, उनके हत्यारोंकी अमानुषिक बर्बरताको न तो उचित माना जा सकता है, और न क्षमा किया जा सकता है। कानूनी अदालतें उनके लिए खुली थीं। कोई भी आदमी, जो हिंसाका प्रयोग करता है, अदालतोंकी मदद लेनेके विरुद्ध असहयोगका तर्क पेश नहीं कर सकता।

किन्तु इस शहादतका ठीक मूल्य आँकनेका समय अभी नहीं आया है। अधिक उपयुक्त यह है कि अब तत्काल क्या करना है, इसपर विचार किया जाये। मैं इस शोकपूर्ण घटनापर भारतीय राष्ट्रीयताके दृष्टिकोणसे ही विचार कर सकता हूँ। इस शौर्यपूर्ण कृत्यका श्रेय केवल सिखोंको ही नहीं, समूचे राष्ट्रको मिलना चाहिए। अतः अपने सिख भाइयोंको मेरी यही सलाह हो सकती है कि वे अपना आचरण राष्ट्रकी आवश्यकताओंके अनुरूप बनायें। हत्यारोंके विरुद्ध न्याय माँगनेका शुद्धतम मार्ग यही है कि न्याय न माँगा जाये। हत्यारे——चाहे सिख हों, पठान हों अथवा हिन्दू हों——हमारे देशवासी हैं। उनको दण्ड देनेसे अब मृत व्यक्ति फिरसे जीवित नहीं हो सकते। जिनके हृदय इस वेदनासे दग्ध हैं, उनसे मैं कहूँगा कि वे हत्यारोंको क्षमा कर दें। इसलिए नहीं कि वे कमजोर हैं, कमजोर तो वे हैं ही नहीं; उनमें इन हत्यारोंको दण्डित करानेकी पूरी क्षमता है। अतः वे उन्हें क्षमा कर दें; इसलिए कि उनकी शक्ति अपरिमित है। शक्तिवान् ही क्षमा कर सकता है। प्रतिशोध लेनेसे इनकार करके, आप अपने प्यारोंकी शहादतकी ज्ञानमें चार चाँद लगा देंगे।

इसके अतिरिक्त खूनियोंको सजा दिलानेके लिए भी असहयोगियोंको ब्रिटिश कानूनी अदालतोंका आश्रय नहीं लेना चाहिए। यदि हम एक वर्षके भीतर स्वतन्त्र होना चाहते हैं, तो हममें साहस होना चाहिए। जबतक हम अपनी इच्छाके अनुसार एक ऐसी सरकार स्थापित नहीं कर लेते जो न्याय कर सकती है तबतक हम हत्यारोके आचरणको भी बरदाश्त करें और उन्हें अदण्डित रहने दें।

सिख लोग सावधान हो जायें। सरकार उन्हें यह समझा कर कि वही अपराधीको दण्ड दे सकती है, उन्हें अवश्य ही अपने साथ कर लेनेका प्रयत्न करेगी। नागरिक शासनके वैध न्यायालय ऐसे जाल होते हैं जिनमें भोले-भाले लोग अनजाने ही फँस जाते हैं।

किन्तु हम जिस शासन-प्रणालीके अधीन हैं, उसकी दुष्टताको यदि हम अभी तक न पहचान पाये हों, और इसीलिए यदि इस कठिन समयमें वर्तमान न्यायालयोंसे न बचें, तो भी हमें सरकारी जाँव-समितिके साथ अपनी भी जाँच समिति बनानेकी अविवारपूर्ण गलती तो कदापि नहीं करनी चाहिए। या तो हम अपनी अपूर्णता अथवा