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सन्देश : ननकाना साहबकी दुःखद घटनापर सिखोंको

कमजोरीको साफ-साफ स्वीकार कर लें और न्यायालयोंका लाभ उठायें या हत्यारोंको हमारे खिलाफ खुलकर खेलनेकी छूट दे दिये जानेकी सम्भावनाका हिम्मतके साथ सामना करें। अपनी कमजोरीको छिपाना खतरनाक है, लेकिन साहसका ढोंग रचना उससे भी ज्यादा खतरनाक है।

यह सभी जानते थे कि महन्त बहुत समयसे, लगभग खुले तौरपर, भिड़न्तकी तैयारी कर रहा था। उसके पास हथियार थे। उसने गोली-बारूदका संग्रह किया था। उसने अपने आसपास गुंडे जुटा रखे थे। सरकारी अधिकारी इन तैयारियोंके बारेमें अवश्य ही जानते रहे होंगे। अतः आप सहज ही सन्देह करते हैं कि उच्च सरकारी अधिकारी इस भयंकर दुष्कृत्यकी कार्यान्वितिकी योजनाको बड़ी ही शान्ति और धीरजके साथ देखते रहे, भले ही उन्होंने इसे प्रोत्साहन न दिया हो। आप सही तथ्य खोज निकालनेको उत्सुक हैं। क्षण-भर विचार करके देखिए, फिर आप स्वयं ही स्वीकार करेंगे कि अगर यह सिद्ध भी हो जाये कि कुछ सरकारी अधिकारी इस षड्यन्त्रमें शामिल थे, तो भी यह बात आपको अथवा भारतको, आज जहाँ हम हैं, क्या वहाँसे एक डग भी आगे ले जायेगी? यह सरकार जिस प्रणालीके अन्तर्गत चलाई जा रही है और उसमें आमूल परिवर्तन नहीं किया जाता तो आप, और लगभग समस्त भारत इस पूरी सरकारको नेस्तनाबूद कर देना चाहते हैं। देशके सामने जो मुख्य प्रश्न अथवा एकमात्र प्रश्न है, उसकी ओरसे राष्ट्रके किसी भी हिस्सेका ध्यान दूसरी ओर बँटाना अनुचित होगा।

यह तो रही उस दुःखद घटनाकी बात।

सारे गुरुद्वारा-आन्दोलनमें सुधार करनेकी आवश्यकता है। इसमें कोई सन्देह नहीं हो सकता कि एक बड़े जत्थेका, गुरुद्वारेपर कब्जा करनेके खयालसे, गुरुद्वारेकी ओर जाना शक्तिका प्रदर्शन है, भले ही उसके मनमें हिसाका कोई विचार या उद्देश्य न हो। और किसी भी सुव्यवस्थित समाजमें किसी भी व्यक्तिको यह छूट नहीं है कि वह शक्तिका प्रदर्शन करके अथवा किसी अन्य अनुचित दबावके बलपर किसी ऐसे दुष्ट व्यक्तिको भी, जिसने स्पष्टतः मन्दिरों-जैसी सामाजिक सम्पत्तिपर कब्जा कर रखा हो, बेदखल कर दे। अगर वह ऐसा कर सकता है तो सिर्फ कानूनी कार्रवाई करके ही कर सकता है। यदि इस तरहसे व्यक्तिगत तौरपर शक्तिका प्रदर्शन या अन्य अनुचित काम करनेकी छूट दे दी जाये तो समस्त सुशासनका अन्त हो जायेगा, और बेचारे अशक्त लोग सुरक्षाके अधिकारसे वंचित रह जायेंगे। अतः आप लोगोंकी ओरसे ऐसा प्रयत्न किया जाना उस खालसा धर्मके ही विपरीत होगा जिसका आधार अशक्तोंकी रक्षा करना है। अपने मन्दिरोंमें सच्चे सुधारके लिए, तथा उनमें से सारी बुराइयोंको दूर करनेके लिए मुझसे अधिक उत्सुक कोई दूसरा नहीं हो सकता। किन्तु हमें ऐसी कार्रवाइयोंमें साथ नहीं देना चाहिए, जो उनसे भी बदतर साबित हों जिन बातोंमें हम सुधार करना चाहते हैं। आप लोगोंके सामने दो ही मार्ग हैं: या तो आप सभी गुरुद्वारों, अथवा जिन मन्दिरोंके गुरुद्वारा होनेका दावा किया जाता है उन मन्दिरोंपर कब्जेके सवालके निपटारेके लिए पंच-निर्णय समितियोंकी स्थापनाकी बात