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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस मामलेमें केवल अपनी लेखनियोंपर ही निर्भर करें, मुझे इसमें बहुत-से लाभ दिखाई देते हैं।

बिहार सरकार

पिछले सप्ताह जब मैंने बिहार सरकारके सम्बन्धमें लिखा था, तब मुझे जितनी आज जानकारी है उसकी आधी भी नहीं थी। अपनी अनवरत यात्राओंमें मुझे समाचारपत्र क्वचित् ही मिलते हैं। जब-कभी कुछ मिल भी जाते हैं तो मुझे उन्हें पढ़ने का समय नहीं मिलता। वह तो जब मैं लखनऊ पहुँचा[१] तब मैंने बिहार सरकारका वह परिपत्र देखा जिसमें अधिकारियोंको निरंकुश आचरण करनेके लिए उकसाया गया है। फिर आश्चर्य नहीं कि बिहारमें असहयोग लगभग एक संविहित अपराध हो गया है। और यदि बिहारके एक मजिस्ट्रेटने एक निरपराध संन्यासीपर, उसके प्रशंसकोंकी भीड़के बीच ही, हाथ उठानेकी निर्लज्जता की तो इसमें भी कोई आश्वर्यकी बात नहीं है। मैं नहीं समझता कि ऐसा अहिंसक वातावरण एक साल पहले सम्भव था। इसमें भी कोई आश्चर्य नहीं है कि मुजफ्फरपुरके मियाँ मुहम्मद शफी-जैसे सम्माननीय नेताको उक्त संन्यासीसे मिलनेसे रोक दिया गया, और इस बातपर कोई ध्यान नहीं दिया गया कि वे कांग्रेसके मन्त्री हैं। मैं आशा कर रहा हूँ कि सरकारी कर्मचारी असहयोगकी सभाओंमें सामूहिक रूपसे उपस्थित होकर सरकारके इस परिपत्रका उत्तर देंगे, और उसे चुनौती देंगे कि वह उन्हें बर्खास्त कर दे। राजकर्मचारियोंको ऐसी सभाओंमें बोलनेकी मनाही हो, यह बात तो समझमें आती है, किन्तु उन्हें असहयोग सम्बन्धी सभाओंमें शामिल होनेसे रोकना, राष्ट्रीय संस्थाओंके लिए चन्दा देनेसे रोकना, अथवा चरखा चलाना शुरू करनेसे रोकना——यह सब तो व्यक्तिगत स्वातन्त्र्यपर अक्षम्य प्रतिबन्ध लगाना है। मुझे विश्वास है कि कर्मचारीगण इस प्रतिबन्धका उल्लंघन करेंगे, और सरकारके इस कार्यमें भागीदार बननेसे इनकार कर देंगे।

सरकारी प्रचार

लॉर्ड चेम्सफोर्डने अपने भाषणमें[२] सरकारके जिस जवाबी प्रचारका उल्लेख किया था उसका नमूना बिहार सरकार पेश कर रही है। इस सरकारने सर्वथा निर्दोष, चरित्रवान असहयोगियोंका मुँह बन्द कर दिया है, तथा अपने अधिकारियों और अन्य पृष्ठ-पोषकोंको असहयोगके विरुद्ध निर्विरोध प्रचार करनेके लिए आमन्त्रित किया है। मालूम हुआ है, अत्युत्साही चौकीदार मेरे नामपर इन सभाओंकी घोषणा करते हैं; लोग जमा होते हैं, लेकिन जब वे वहाँ अपरिचित चेहरे देखते हैं तो उनमें से अधिकांश लोग चले जाते हैं। जो लोग सहयोगवादियोंकी ओजपूर्ण वक्तृता सुननेको रह जाते हैं, उनसे कहा जाता है कि यदि अदालतोंका त्याग कर दिया जायेगा और शराबकी दुकानें बन्द कर दी जायेंगी तो सरकारी आय कम हो जायेगी। इस प्रकार ये सहयोगी वक्ता शराब और मुकदमेबाजीको प्रोत्साहन देते हैं। मैंने एक

  1. २६ फरवरी, १९२१ को।
  2. देखिए परिशिष्ट ३ ।