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विश्वस्त कार्यकर्ता द्वारा दिये गये एक विशद और सजीव विवरणका सार-मात्र दिया है। ऐसा हो रहा होगा, यह बात सम्भव है। जरा-सा विचार करनेसे ही समझमें आ जायेगा कि सरकारी वक्ताओंने वही सब कहा होगा जो मुझे खबर देनेवालोंने बताया है। असहयोगी वक्ता प्रायः अपनी बातका प्रारम्भ खिलाफत और पंजाबके अन्यायोंका वर्णन करके तथा जिस प्रणालीके अधीन हम शासित हो रहे हैं उस प्रणालीकी शैतानी प्रवृत्तिपर प्रकाश डाल करके करता है। और वह अपना भाषण समाप्त करता है लोगोंसे यह कहते हुए कि वे शान्त रहें, मादक द्रव्यों, कानूनी अदालतों, सरकारी पाठशालाओं और विदेशी वस्तुओंका त्याग कर दें, तथा चरखा चलाना शुरू करें। अगर कोई असहयोगी वक्ता नासमझ है तो वह भी सहयोगवादियोंके प्रति अपशब्द कहता है और अज्ञानवश उनके सामाजिक बहिष्कारकी सलाह देता है। सरकारी वक्ता खिलाफत और पंजाबके अन्यायोंके बावजूद सरकारको प्रायः देवकल्प ही घोषित करेगा, और लोगोंसे कहेगा कि वे अदालतोंका त्याग न करें, क्योंकि वे न्याय देती हैं और शराब पीना न छोड़ें, क्योंकि गाहे-ब-गाहे पीना कोई जुर्म नहीं है, और उससे सर कारको आमदनी होती है और उसे इस योग्य बनाती है कि वह पाठशालाएँ चलाये। चरखके बारेमें वह यही कहेगा कि यह तो बाबा आदमके जमानेकी एक सनक है, जिसे आज अपने घरोंमें फिर चालू करना असम्भव है, और विदेशी वस्तुओंके बिना तो हमारा काम तबतक चल ही नहीं सकता, जबतक कि भारत इतना शिक्षित न हो जाये और उसका इतना अधिक औद्योगीकरण न हो जाये कि वह विदेशी बाजा- रोंसे प्रतिद्वन्द्विता कर सके। इस प्रकार सरकारी प्रचारमें मद्यपान, मुकदमेबाजी तथा विदेशी वस्तुओंके व्यवहारको कमसे कम अप्रत्यक्ष रूपसे तो प्रोत्साहन दिया ही जायेगा।

अगर जनताकी इच्छाओंका ध्यान रखनेवाली कोई ईमानदार सरकार होती तो वह जनतासे गठबन्धन करनेका यह स्वर्ण अवसर न चूकती। इसका लाभ उठाकर वह मद्यपानके अभिशापको दूर करती; राष्ट्रीय शिक्षाकी दिशामें होनेवाले प्रयोगोंको प्रोत्साहित करती ताकि लोग आत्मनिर्भरता सीखें, पंच-निर्णय द्वारा झगड़ोंके निपटारे की इच्छाको बढ़ावा देती, और हाथकी कताईके पुनः प्रचलनका स्वागत करती——फिर चाहे उसका उद्देश्य इतना ही होता कि मशीनी उत्पादनके बावजूद हमारी जो आवश्यकता बाकी रह जाती है उसकी पूर्ति हो और निठल्लेपनकी जगह लोगोंको श्रम करनेकी प्रेरणा मिले। जनताके कल्याणके लिए उत्सुक सरकार इस संघर्षके आन्तरिक अर्थको पहचानती, उसके धार्मिक स्वरूपको समझती तथा चूँकि वह उसके सदुद्देश्य तथा उसकी नैतिक शक्तिसे परिचित होती इसलिए अपने प्रति उसके विरोधकी चिन्ता न करती, और जनतामें शक्ति, चारित्र्य और शुद्धताकी लालसाकी इस महान् पुनर्जागृतिका स्वागत करती। किन्तु इस सरकारके लिए तो उसका अर्थ होगा हृदय-परिवर्तन, जिसकी अभी तो आशा नहीं की जा सकती।

नागपुरकी घटना

ऐसे सहृदय-परिवर्तनकी आशा करनेका समय अभी नहीं आया है। इतना ही नहीं, नागपुरके मुकदमोंसे यह भी स्पष्ट है कि मध्यप्रान्तकी सरकारका इरादा मद्य-