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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुसलमानोंके दावेकी वकालत कर रहे हैं। यदि असहयोग न किया जाता, तो क्या वे ऐसा करते? और अब भी उन्हें क्या कहना है? यदि मुसलमानोंके दावेको नामंजूर कर दिया जाता है और असहयोग चालू रहता है तो उनका खयाल है कि उसके परिणामस्वरूप अराजकता फैलेगी। अतः, वे धमकी देते हैं कि व्यवस्थाको पुनः स्थापित करनेके लिए सरकार आगे आयेगी। व्यवस्था "पुनः स्थापित" करनेका क्या मतलब है, सो हम जानते हैं। वाइसराय महोदय भूल जाते हैं कि यदि भारतमें अराजकता फैली तो वह इसलिए फैलेगी कि साम्राज्य-सरकार और भारत-सरकार दोनोंने भारतकी तीस करोड़ जनताके प्रति अपने कर्त्तव्यकी घोर अवहेलना की है।

कोई वाइसराय भारतके मामलेकी सिफारिश-भर करके सन्तुष्ट रह सकता है। लेकिन क्या भारत इतनेसे सन्तुष्ट रह सकता है? जो भूखसे मर रहा हो वह क्या मात्र सहानुभूतिसे सन्तुष्ट रह सकता है, विशेषतः जब वह जानता है कि सहानुभूति देनेवाला सहानुभूतिसे कुछ अधिक भी दे सकता है? जब भारत सरकार हमसे एक अनैतिक वरिष्ठ सत्ताकी बात माननेके हमारे कर्त्तव्यकी दलील पेश करती है, तब उसे उस सत्ताके खिलाफ हमारी आलोचनाका भी भागीदार होना पड़ेगा। जो आदेश विश्वास और न्यायभावनाको तोड़कर जारी किये जायें, उनका पालन करना किसी भी सेवकका कर्त्तव्य नहीं होता। सेवरकी सन्धि गम्भीरतापूर्वक दिये गये वचनोंको तथा न्याय और ईमानदारीके सर्वसामान्य सिद्धान्तोंको भंग करती है। जो भूखे मनुष्यके साथ सच्ची सहानुभूति रखता है, उससे यही अपेक्षा की जायेगी कि वह भूखके कष्टोंमें हिस्सा बँटाये, उससे यह आशा तो नहीं की जाती कि यदि भूखके मारे उस भूखे व्यक्तिके पागल हो जानके लक्षण दिखाई दें, तो वह उसे गोली मार दे। अतः यदि भारतमें अराजकता फैली तो इसमें उसका उत्तरदायित्व होगा भारत सरकारपर और उन लोगोंपर जो उसके अन्यायोंके बावजूद उसके पक्षका समर्थन करते हैं। यह दायित्व उनपर नहीं होगा, जो उसके जैसे अन्याय करनेसे इनकार करते हैं, और लोगोंको इन भारी अन्यायोंको भुला देनेकी प्रेरणा देनेका असम्भव कार्य करनेसे इनकार करके, उनके क्षोभको एक उचित दिशा देनेका प्रयत्न करते हैं।

इस सरकारको शैतानकी सरकार कहा गया है, इसपर वाइसराय महोदयको आश्चर्य होता है। इस विशेषणको उन्होंने अपने लिए इस्तेमाल किया गया माना है, जो ठीक नहीं है। कारण, किसीने व्यक्तियोंपर शैतान होनेका आरोप नहीं लगाया है। वाइसराय महोदयने कहा है कि इस तरह तो उनके भारतीय सहयोगियोंको भी इस कोटिमें शामिल कर लिया गया है। यह कहकर उन्होंने अपने तईं तो बड़ी चतुराई की, किन्तु यह कुछ इतनी भोंडी किस्मकी चतुराई है कि इससे कोई भी धोखेमें नहीं आयेगा। मगर वाइसराय महोदय और उनके सहयोगी——चाहे वे भारतीय हों, चाहे अंग्रेज——जिस शासन-प्रणालीको चला रहे हैं, उसमें शैतानियतके सारे लक्षण वर्तमान हैं; वह धोखेबाजी, पाखण्ड और बेईमानीसे भरी हुई है; उसके अमलदार मौका आनेपर घोर अत्याचार करते हैं; और फिर वे एक ओर तो इन अत्याचारोंका औचित्य सिद्ध करते हैं और दूसरी ओर दबी जबानसे अपने दोष भी स्वीकार करते हैं। परमश्रेष्ठको