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वाइसरायके दो भाषण

मैं आश्वस्त करता हूँ कि असहयोगमें किसीके प्रति पक्षपात नहीं है। असहयोगियोंके दलमें किसी अंग्रेजके लिए भी एक सम्मानपूर्ण स्थान बराबर सुरक्षित है और कोई भी भारतीय सहयोगवादी, एक बुरी सरकारके अपराधोंका साझीदार होनेके नाते जैसी आलोचना योग्य है, वैसी आलोचनासे बरी नहीं किया जायेगा।

परमश्रेष्ठ जब असहयोगका मुकाबला, सहयोगके प्रचारसे करनेका सिद्धान्त घोषित करते हैं, तो उनकी स्थिति सबसे अधिक सुरक्षित प्रतीत होती है। उन्हें इस बातसे जितना बने सन्तोष प्राप्त करनेका हक है कि असहयोगके आह्वानके प्रति खिताबयाफ्ता लोगों और विद्यार्थियोंमें से बहुत कमने उत्साह दिखाया और नई कौंसिलोंके सदस्य बननेके लिए काफी भारतीय मिल गये हैं। किन्तु असहयोगी यद्यपि स्वीकार करते हैं कि इस आह्वानके प्रति और अधिक लोगोंको उत्साह दिखाना चाहिए था फिर भी उन्हें इस बातका सन्तोष है कि सरकारी खिताब, सरकारी स्कूल तथा कानूनी अदालतें लोगोंकी नजरसे गिर गई हैं। ये संस्थाएँ अब वैसी ही अन्धश्रद्धाकी पात्र नहीं रहीं, जैसी कभी थीं। असहयोगियोंको सन्तोष है कि वकालत करनेवाले वकील तथा खिताबयाफ्ता लोग अब नेता नहीं हो सकते। वे जानते हैं कि जिन्होंने खिताब, वकालत अथवा सरकारी स्कूल नहीं छोड़े हैं, वे भी मनसे असहयोगी हैं तथा अपनी कमजोरी स्वीकार करते हैं।

परमश्रेष्ठके जिन सलाहकारोंने उन्हें यह विश्वास दिलाया है कि असहयोगियोंने जन साधारणकी ओर ध्यान देना अभी-अभी शुरू किया है, उन्होंने दरअसल उन्हें गुमराह ही किया है। सच तो यह है कि वे ही हमारे एकमात्र अन्तिम आधार हैं। किन्तु हम अभी उन्हें छेड़ने नहीं जा रहे हैं। हम उन्हें धैर्यपूर्वक तबतक राजनैतिक शिक्षा देते रहेंगे जबतक वे निरापदरूपसे कार्य करनेके लायक नहीं बन जाते। हमारे लक्ष्य विषयमें कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। जिस क्षण हमें यह विश्वास करनेका उचित कारण दिखाई देगा कि कुर्की, जब्ती आदि क्षोभ-जनक कानूनी कार्रवाइयोंके बावजूद भारतके सिपाही और किसान अहिंसापर कायम रहेंगे, उसी क्षण हम इन सिपाहियोंसे अपने हथियार छोड़ देने और किसानोंसे लगान देना बन्द कर देनेके लिए कहेंगे। हमारी कामना यही है कि उस स्थितितक पहुँचनेकी आवश्यकता न पड़े। ऐसा गम्भीर कदम न उठाना पड़े, इसके लिए हम कुछ भी उठा नहीं रखेंगे। किन्तु यदि समय आया और आवश्यकता उत्पन्न हो गई तो हम पीछे भी नहीं हटेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ९-३-१९२१