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२१३. सन्देश : किसानोंको

[९ मार्च, १९२१][१]

यदि हम नीचे लिखे हुए नियमोंका अच्छी तरह पालन नहीं करेंगे तो हमको स्वराज्य नहीं मिल सकता, न हमारे दूसरे दुःख दूर हो सकते हैं।

१. हमें किसीको मारना नहीं चाहिए और न लकड़ी चलाना चाहिए। हमें किसीको न गाली देना चाहिए और न दूसरी किसी तरह जबरदस्ती करना चाहिए।

२. दुकानोंको नहीं लूटना चाहिए।

३. जो हमारा कहा न माने उसको मुहब्बतसे अपनाना। उसको मारपीट नहीं करना। उसका पानी, हज्जाम, धोबी भी बन्द न करना।

४. सरकारका और जमींदारोंका पोत या लगान बन्द नहीं करना।

५. जमींदार यदि कुछ दुःख दें तो संयुक्त प्रान्तीय किसान सभाके सभापति पंडित मोतीलालजी नेहरूको खबर देना, और जो-कुछ वे कहें, वैसा करना।

६. याद रखना कि जमींदारोंको भी हम मित्र बनाना चाहते हैं।

७. हम इस समय कानून-भंगकी लड़त नहीं चाहते हैं। इसलिए सब कानूनी आज्ञाओंको मानना।

८. रेलगाड़ी इत्यादिको न रोकना। न जबरदस्ती बिना टिकट उसमें बैठना।

९. यदि हमारे किसी नेताको सरकार पकड़ ले तो उन्हें न घेरना, न कुछ दंगा या तुफान करता। सरकारके किसीको पकड़नेसे हम नहीं हारेंगे। हम हारेंगे तब, जब पागल बनकर कुछ नुकसान करेंगे या मारपीट करेंगे।

१०. दारू, बीड़ी, तम्बाकू और सब दुर्व्यसनोंको छोड़ना।

११. परस्त्रीको माँ-बहन समान समझना, उसकी रक्षा करना।

१२. हिन्दू-मुसलमानके बीच प्रेम रखना।

१३. हिन्दू जातियोंमें किसीको नीच ऊँच, अछूत——ऐसा नहीं समझना। सबमें समदृष्टि और भ्रातृभाव रखना। हम सब भारतवासी भाई-बहन हैं, ऐसा भाव रखना।

१४. जुआ नहीं खेलना।

१५. चोरी नहीं करना।

१६. झूठ हरगिज नहीं बोलना। सत्य ही हमेशा कहना और सच्चा व्यवहार करना।

  1. अवधकी यात्राके दौरान गांधीजीने वह सन्देश संयुक्त प्रान्त (अब उत्तरप्रदेश) के किसानोंको दिया था। मूल हिन्दीका एक स्वतन्त्र अंग्रेजी अनुवाद ९-३-१९२१ के यंग इंडियामें भी छपा था। इस सन्देशके आजमें उपलब्ध पाठको लगभग अविकल रूपमें दिया जा रहा है।