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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करें और या तो असहयोगकी दृष्टिसे निर्णय करें अथवा आपने मेरे ऊपर जो जिम्मेदारी डाली है उससे मुझे मुक्त कर दें।

आपका,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
ट्रिब्यून, १३-३-१९२१

 

२१५. सिख जागृति

सिखोंमें जबरदस्त जागृति आ गई है। सिख कौम इतनी पराक्रमी है कि उसकी जागृति या तो हिन्दुस्तानको आठ महीने पूरे होनेसे पहले आजादी दिला देगी या फिर हिन्दुस्तानकी आजादीको रोक देगी। सिखोंमें मानसिक और शारीरिक दोनों तरहका बल है। वे तलवारके धनी हैं, और कहा जा सकता है कि उनका मनोबल भी कम नहीं है।

उनकी संख्या तीस लाख मानी जाती है। आजतक मैं सिख सम्प्रदायको हिन्दूधर्मका ही एक सम्प्रदाय मानता था। लेकिन सिखोंके नेता सिख- धर्मको एक पृथक धर्म ही मानते हैं। गुरुनानक उसके जन्मदाता थे। गुरु गोविन्दसिंह उसके रक्षक थे। कुल मिलाकर सिख दस गुरु मानते हैं। गुरुनानक स्वयं तो हिन्दू ही थे लेकिन सिख नेता मानते हैं कि उन्होंने नये धर्मका प्रवर्तन किया। उनके बाहरी लक्षण पाँच 'क'में निहित हैं। वे पाँच वस्तुएँ केश, कंघी, कड़ा, कच्छ और कृपाण हैं। दाढ़ी और चोटीको वे नहीं मुँडाते इसलिए कंधीकी जरूरत है। कलाईमें लोहेका कड़ा पहनते हैं; वह संयमकी निशानी है, कच्छकी बात आसानीसे समझमें आनेवाली है। कृपाण कटारका ही एक प्रकार है। वे उसे धर्मकी रक्षा करनेकी शक्तिकी निशानी और शत्रुको आतंकित करनेवाली वस्तु मानते हैं। कुछ वर्ष पहलेतक इनपर विशेष जोर नहीं दिया जाता था, लेकिन आजकल नौजवान सिख इन पाँचों वस्तुओंपर बहुत जोर देने लगे हैं और जो अपने आपको सिख मानते हुए भी इन पाँच चिह्नोंको नहीं रखते सुधारक उन्हें सिख मानते ही नहीं। सुधारक तो स्त्रियोंसे भी कृपाण धारण करवा रहे हैं।

मैं एक बुर्जुग सिखसे मिला तो उन्होंने मुझे बताया कि सिख वर्णाश्रम धर्मको नहीं मानते; उनमें ऊँच-नीच नहीं है, अस्पृश्यता नहीं है, वे मूर्तिपूजाको पाप मानते हैं, राम-कृष्ण आदिको मान देते हैं लेकिन हिन्दूधर्ममें उनका जो स्थान है वे उन्हें वह स्थान नहीं देते। वे गो-रक्षां को भी नहीं मानते हालाँकि गोमांस नहीं खाते। वे पुनर्जन्म और मोक्षमें विश्वास करते हैं। 'वेदों' को अथवा अन्य हिन्दू शास्त्रोंको वे विशेष मान नहीं देते। उनका धर्म-ग्रन्थ गुरुओंकी वाणी है। उससे भिन्न किसी शास्त्रको वे धर्मशास्त्र के रूपमें नहीं मानते। उनमें तम्बाकू और शराबको निषिद्ध माना गया है।