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रहा; लेकिन यह शान्ति कमजोरों और अज्ञानियोंकी जड़ता नहीं है, वरन् यह उन लोगोंकी प्रबुद्ध शान्ति है जिन्हें अपनी दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई शक्तिका भान हो रहा है। भारत उस रोगको जानता है, जिससे वह पीड़ित है, और आन्तरिक शुद्धीकरणकी प्रक्रिया से उस रोगसे मुक्त होने की तैयारी कर रहा है।

सदा सावधान रहिए

लेकिन साथ ही हम क्या कहते और करते हैं, इस विषयमें हमें सावधान रहना चाहिए। भारतके कुछ सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति इसीलिए अलग खड़े हैं कि उन्हें वह विश्वास नहीं है कि उत्तेजनाओंके बावजूद जनता अहिंसक बनी रहेगी। असहयोगियोंकी छोटी- से-छोटी गलती, यहाँ तक कि उनका अशिष्ट व्यवहार भी, हमारे उद्देश्यकी प्राप्तिमें बाधा पहुँचाता है। हम एक ही समय एक ओर समझदार तथा संयमी और दूसरी ओर क्रुद्ध नहीं हो सकते। एक बारमें या तो हम हिंसक हो सकते हैं या अहिंसक- दोनों नहीं। हमने अपने लिए एक रास्ता चुन लिया है, और अब उसमें जो भी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ें, उन्हें सहन करना चाहिए। अहिंसापर दृढ़ रहनेका निश्चय कर लेनेके बाद, हमें हिंसाकी ओर किसी प्रकारका झुकाव नहीं दिखाना चाहिए। अतः हमें सावधान रहना है कि किसी भी रूपमें हम हिंसाका समर्थन नहीं करेंगे। यदि हम अपने आन्दोलनको अहिंसाके सुदृढ़ आधारपर स्थित नहीं करते, तो वह ताशके मकानकी तरह किसी दिन एक फूंक में ही भरभरा पड़ेगा। हम एक ही साथ खुदा और शैतान, दोनोंकी भक्ति नहीं कर सकते।

जालन्धरका एक गश्ती पत्र

जालंधरके डिप्टी कमिश्नरने पंचायतोंके बारेमें जो निर्देश जारी किये वे देखने- में बड़े निर्दोष लगते हैं। उन्होंने जिस ढंगसे नियम निर्धारित किये हैं, उसपर कोई आपत्ति नहीं की जा सकती; किन्तु फिर भी वे जिस बातपर चोट करना चाहते थे उसपर चोट नहीं कर सके हैं। इसमें सन्देह नहीं कि निजी पंचायतोंके निर्णय कानूनको दृष्टिमें बंधनकारी नहीं होते। किन्तु पंचायतोंकी शरण केवल वे लोग ही लेंगे जो स्वयं अपनी इच्छासे उनके निर्णयोंका पालन करनको तैयार हों, और इसलिए इन लोगोंको इस बातकी जरूरत ही नहीं होगी कि कोई पंचायतके आदेशोंपर अमल करवाये । निःसन्देह, जघन्य अपराधोंके मामले अपराधीसे समझौता कर लेना गलत है। किन्तु जिस व्यक्तिका माल चोरी गया है उसे दुनियाकी कोई भी अदालत शिका- यत दर्ज करानेके लिए बाध्य नहीं कर सकती। एक वकीलकी हैसियतसे भी मैंने अपने मुवक्किलोंको ऐसे चोरोंपर तक मुकदमा दायर न करनेकी सलाह दी है, जिन्हें वे जानते थे। इस तरहके कुछ लोगोंको मैंने पुलिससे छुड़ाया भी है। लेकिन ऐसा करके मुवक्किलोंकी तो बात ही क्या, मैंने या पुलिसने भी ऐसे मामलोंमें अपराध करनेवालेके साथ कोई समझौता नहीं किया। फिर जो बार-बार चोरी करता है, उसे पंचायत समाज- बहिष्कृत क्यों नहीं कर सकती? अपराधियोंको दण्ड देनेके लिए न्यायालय स्थापित रहनेके बाद भी समाज अपने-आपको सामाजिक शक्तिके साधनोंसे वंचित नहीं कर