पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/४६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४३८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेता। सरकार जब चोरों और अन्य अपराधियोंको दण्ड देना चाहती है, तो इसका मतलब यही है कि इन बुराइयोंको दूर करनके लिए वह अपने ढंग से काम ले रही है। अतः मैं जालंधरकी पंचायतोंसे आग्रहपूर्वक कहूँगा कि वे लोगोंको कम खर्चमें, जल्दी से- जल्दी सही-सही न्याय देनेका अपना अत्यन्त उपयोगी काम इसी तरह जारी रखें। हाँ, इस बातकी सावधानी अवश्य रखनी चाहिए कि पंचायतें कहीं दण्डात्मक उपायोंका आश्रय तो नहीं ले रही हैं। हमारे हाथमें केवल एक ही दण्ड है, और वह है जनमतका बल। जो लोग स्वेच्छासे पंचायतका आश्रय लेते हैं, वे पंचायतकी आज्ञाओंका उल्लंघन करेंगे, इस बातका खतरा ज्यादा नहीं रहता। कुछ अवज्ञाका खतरा उठानेके लिए तो हमें तैयार ही रहना चाहिए। किसीको अनिवार्य रूपसे पंचायतकी शरण में लाने, अथवा किसीसे पंचायतकी आज्ञाओंको कार्यान्वित कराने के लिए हमें उतावलीमें जोर- जबरदस्ती अथवा धमकीका प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए।

उतावले गो-रक्षक

अपनी यात्रा के दौरान मुझे ऐसे बहुत से हिन्दुओंसे मिलनेका मौका मिला है, जो गो-रक्षाके लिए जल्दी मचा रहे हैं। मैं उनका ध्यान एक घरेलू कहावतकी ओर आकृष्ट करनेकी धृष्टता करूंगा-'उतावला सो बावला ।' अनेक नगरपालिकाओंमें, उदाहरणके लिए लाहौरमें, लोग बछड़ों और दुधारू गायोंकी हत्यापर रोक लगानेके लिए एक उपनियम बनानेका प्रयत्न कर रहे हैं। उद्देश्य प्रशंसनीय है, और उसके विरुद्ध कोई आपत्ति भी नहीं की जा सकती। सिर्फ बहुमतके निर्णयसे ही यह स्थिति नहीं लाई जा सकती। इसमें पहल तो पूरी तरह मुसलमानोंको ही करनी होगी। हिन्दू जोर-जबरदस्तीसे यह काम जल्दी नहीं करा सकते। और जबतक हम स्वराज्य प्राप्त नहीं कर लेते, मुसलमानोंसे कानूनी कदमकी अपेक्षा नहीं की जा सकती। या तो हम असहयोगी हैं, या नहीं है। यदि हम असहयोगी हैं तो गायकी रक्षाके लिए भी हम सरकारकी सहायता नहीं मांग सकते। अतः मैं आशा करता हूँ कि लाहौरके तथा अन्य स्थानोंके हिन्दू असहयोगी भी गोरक्षाके लिए कानूनका संरक्षण प्राप्त करनेके हर आन्दो- लनसे अपने-आपको पूर्णतया अलग रखेंगे। हमें एक तथ्यको ध्यान में रखना चाहिए कि इस विषय में मुसलमान सब जगह बहुत ठीक काम कर रहे हैं। वे हिन्दुओंकी भावनाओं- का सम्मान करनेका अधिकतम प्रयत्न कर रहे हैं। मियाँ छोटानी और मियाँ हाजी अहमद खत्रीने पिछली बकरीदके मौकेपर जितना किया, उससे ज्यादा कोई भी नहीं कर सकता था। उतावले हिन्दू जल्दी करके अपने ही उद्देश्यको नुकसान पहुँचायेंगे। या तो हमें मुसलमानोंके सौजन्यपर भरोसा करना है या हथियारोंकी ताकत और कानूनपर । जब हमने पहली वस्तुको चुन लिया है, तब हम दूसरी वस्तुओंका आश्रय नहीं ले सकते। हमें याद रखना चाहिए कि हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच बढ़ती हुई मित्रताको नष्ट करनेवाली शक्तियाँ अभीतक सक्रिय हैं। दुष्ट लोग उस डोरको तोड़ डालनेकी पूरी कोशिश कर रहे हैं, जिससे दोनों बंधे हुए हैं। उन्होंने लाहौरकी घटनासे फायदा उठाना शुरू भी कर दिया है। हमें 'दुश्मन' के हाथों नहीं खेल जाना चाहिए।