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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और स्वयं किसी बातमें विश्वास करना सीखें। यदि में भारतके सभी लोगोंमें वैसा ही गहरा विश्वास उत्पन्न कर सकूं, जैसा मेरा है, तो भारत आज ही स्वराज्य प्राप्त कर सकता है। क्योंकि दुनियाकी कोई भी ताकत एक होकर काम करनेवाले तीस करोड़ लोगोंके इस राष्ट्रकी इच्छाके आड़े नहीं आ सकती।

किन्तु सर विलियम विन्सेंटने अभी उसी दिन बहुत कृपापूर्वक विधान-सभाको बताया था कि भारत स्वशासित उपनिवेशोंका दर्जा भी प्राप्त नहीं कर सकता क्योंकि उस स्थितिमें वह बहुत आसानी से किसी भी आक्रमणकारी शक्तिका शिकार हो जायेगा, और यदि वैसा न भी हुआ, तो आन्तरिक झगड़ोंके कारण ही उसके टुकड़े-टुकड़े हो जायँगे। यदि यह सत्य है, तो भारतमें ब्रिटिश शासनके लिए यह सबसे बड़े कलंककी बात है। किन्तु मैंने इससे पहले कहा है कि हमें न तो विदेशी आक्रमणोंसे, और न आन्तरिक अराजकतासे ही डरनेकी कोई आवश्यकता है। ब्रिटिश शासनने निश्चय ही हमें पुरुषार्थहीन बना दिया है। चूंकि हमें अपने शासकोंने बिलकुल निःशस्त्र कर दिया, इसलिए हमारी लड़ने की शक्ति कम हो गई है। "फूट डालो और राज करो" की नीति निश्चय ही कुछ समय तक हिन्दुओं और मुसलमानोंको अलग रखने में सफल रही। किन्तु हमारे समान दुर्भाग्यने हमें इस विपत्तिकी घड़ीमें भाई-भाई बना दिया है। यदि हम विदेशी कपड़ा पहनना छोड़ दें और विदेशोंसे सिर्फ ऐसे ही मालका व्यापार करें जिसकी हम जरूरत समझें तो हमें विदेशी आक्रमणसे डरनेकी आवश्यकता नहीं है। दक्षिण आफ्रिकाके पास बहुत मामूली स्थायी सेना है और जलसेना तो है ही नहीं। यह सच है कि वहाँका प्रत्येक बोअर मर्द लड़ाका है। किन्तु लड़ाका होनेके गुणने ही दक्षिण आफ्रिकाके गोरोंको एक राष्ट्र नहीं बनाया है। एकत्वकी चेतना तथा अपने देशके लिए मर-मिटनेकी सामर्थ्यने उन्हें राष्ट्र बनाया है। एकत्वकी चेतनाके गुणकी हममें नित्य वृद्धि हो रही है; इसके साथ ही मर-मिटनेकी शक्ति भी अवश्य आयेगी। इसके लिए अंग्रेजी स्कूलों अथवा कौंसिल-भवनोंमें प्रशिक्षण प्राप्त करनेकी आवश्यकता नहीं है। और चूँकि मुझे लगता है कि भारत अपनी एकताको अप्रत्याशित रूपसे तेजीके साथ अनुभव करता जा रहा है, इसलिए में विश्वास करता हूँ कि हममें एकता और शक्तिकी चेतनाका इतना विकास कर लेनेकी पूरी सम्भावना है कि हमारी तत्काल स्वराज्यकी मांगको कोई अस्वीकार न कर सके। अराजकताके हौअसे हमें नहीं डरना चाहिए । यद्यपि बम्बईकी सड़कपर कभी-कभी कोई पठान अपने पागलपनका परिचय दे बैठता है और यद्यपि ननकाना साहबमें कोई महन्त कभी-कभी राक्षसी कृत्य भी कर बैठता है, तथापि मूलतः हम भले और सीधे-सादे तथा शान्तिप्रिय लोग हैं। और जब सिख, गुरखे, राजपूत और पठान, सभी अपने आपको एक ही राष्ट्र मानने लगेंगे तब अगर हम चाहेंगे तो हममें इतनी सामरिक शक्ति भी आ जायेगी कि लुटेरोंके बड़ेसे-बड़े दलका भी, जो हमारा कोई दोष न होनेपर भी हमें लूटना चाहेगा, हम मुकाबला कर सकेंगे। हमारे शासक तो हमें बराबर यही शिक्षा देते रहे हैं, हममें यही भावना भरते रहे हैं कि हम असहाय हैं। और इसी शिक्षाने मेरी आत्माको उस प्रणालीके विरुद्ध उठ खड़ा होनेको मजबूर कर दिया है, जिसे