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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

व्यवस्था करनेमें एक क्षणका भी विलम्ब नहीं किया जायेगा। यह एक ऐसे व्यक्ति- की स्मृतिका समुचित और भव्य सम्मान होगा, जिसने स्वराज्य-प्राप्तिके लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया, और जिसे मृत्यु के समय भी केवल स्वराज्यका ही ध्यान था। कार्यकारिणी समिति निस्सन्देह साधिकृत निर्देश जारी करेगी। किन्तु जब हमारे सामने हमारा स्पष्ट कर्त्तव्य है तब हमें निर्देशोंकी प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। हम सरलता से पंजाबियोंके उदाहरणका अनुकरण कर सकते हैं, और आगामी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीको दिखा सकते हैं कि अपने कर्तव्यका पालन करने के लिए हमने क्या किया है।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, १६-३-१९२१


२२१. अकालसे संरक्षण

जब मैंने यह लिखा था कि चरखा एक मामूली घरेलू यन्त्र होकर भी अकालके विरुद्ध बीमा ही है तब उसके समग्र प्रभावका मुझे भी पूरा अनुमान नहीं था । तर्कके सहारे जिस बातका मुझे उस समय कुछ अस्पष्ट-सा अनुमान हुआ था वह अब अनुभवकी पैनी आँखों से एकदम स्पष्ट दिखाई दे रही है। बीजापुर, अहमदनगर तथा गुजरातके कुछ भागोंमें अकाल सरपर खड़ा है।[१] हमें चाहिए हम ध्यानपूर्वक विचार करें कि चरखा किस प्रकार अकालसे रक्षा करनेका साधन बन सकता है।

थोड़ा हिसाब करके देखें। एक चरखेका दाम लगभग छः रुपये होगा। यदि तीन व्यक्तियोंके परिवारको हम दो चरखे दे दें और यदि सब मिलकर आठ-आठ घंटे चरखा चलायें तो वे प्रतिदिन कमसे-कम छः आने कमा सकते हैं। मेरा दावा है कि छः आने कमा लेने पर परिवार इस संकट-कालमें भी अपना निर्वाह कर सकेगा। मुझे लगता है कि वे सब बारह-बारह घंटे चरखा चला सकते हैं, क्योंकि उन्हें अपने ही घरोंमें अपनी सुविधानुसार काम करना है। वे प्रतिदिन नौ आने कमाकर अपनी रोजाना आयमें ५० प्रतिशत वृद्धि कर सकते हैं। इस प्रकार १२,००० की लागतसे हम चार महीनेतक एक हजार परिवारों यानी तीन हजार व्यक्तियोंका भरण-पोषण कर सकते हैं। इसके बदले में हमें उनसे १,००० परिवार x ६ आने x १२० दिन_ = ४५,००० रुपये मजदूरीके रूपमें वसूल होते हैं। जरूरी बात है कि सबसे पहले तो अकाल-सहायता कार्यके लिए धुनी हुई रुई और चरखोंके अलावा हमें ४५,००० रुपयोंका भी प्रबन्ध करना होगा। अकाल पीड़ित लोगों द्वारा काते गये सारेके-सारे सूतका उपयोग राष्ट्र कर सकेगा। सीखनेवाले शुरू-शुरूमें थोड़ा नुकसान भी करेंगे। मैं थोड़ा शब्दका प्रयोग जानबूझकर कर रहा हूँ क्योंकि उस रुईका कुछ-न-कुछ उपयोग तो हो ही सकता है।

 
  1. १. १९२१ के प्रारम्भमें सरकारने बीजापुर जिलेमें अकालकी घोषणा कर दी और बम्बई अहातेके पाँच जिलोंको अभावग्रस्त क्षेत्र मान लिया था ।