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अकालसे संरक्षण


यदि हम इन परिवारोंको यह चरखा भेंटमें दे दें तो उनके कभी भूखों मरने- की नौबत न आये और न उन्हें पूंजीकी आवश्यकता रहे । भविष्य में इन परिवारोंका सिर्फ इस बातका ध्यान रखना होगा कि उन्हें रुई मिलती रहे और जितना भी सूत वे कातें वह तत्काल खरीद लिया जाये। यह प्रयोग कई स्थानोंपर किया जा सकता है और मेरा तो यह दावा है कि यदि हम प्रत्येक घरमें चरखेका प्रचलन कर सकें तो पूरे राष्ट्रका अकालके विरुद्ध प्रायः बीमा ही हो जाता है। मैंने यहाँ यह मान लिया है कि अभाव पैसेका है और अकाल पीड़ित लोगोंके पास यदि पैसा हो तो वे अन्न खरीद सकते हैं। तीन वर्ष पहले खेड़ामें भी यही हुआ था और पिछले वर्ष उड़ीसा[१] भी। बीजापुर और गुजरातका भी यही हाल हुआ है। इसलिए में जनतासे यह प्रयोग करनेके लिए कहूँगा । दानशील व्यक्तियोंसे मेरी प्रार्थना है कि वे सरकारी संगठनोंको धन देकर अपनी उदारताका अपव्यय न करें, क्योंकि ये संस्थाएँ तो जनताको उत्तरोत्तर पंगु ही बनाती चलती हैं। मैं उन्हें सलाह दूंगा कि वे स्वयं विश्वसनीय कार्यकर्ताओंकी समितियाँ बनायें और अपने आप यह प्रयोग करके देखें । निःसन्देह वे देखेंगे कि इसमें घाटे या असफलताकी कोई गुंजाइश नहीं है और इसमें इस बातकी पूरी-पूरी सम्भावना तो है ही कि वे परिवार आत्मनिर्भर बन सकेंगे; साथ ही उन्हें यह भी नहीं लगेगा कि वे लोगोंकी खैरातपर जी रहे हैं।

किसीको एक क्षणके लिए भी यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि चरखा चन्द दिनों- के मनबहलावके लिए खिलौना है । हजारों चरखोंका निर्माण हुआ है और वे चलाये जा रहे हैं। दरिद्रोंको प्रतिमास हजारों रुपये बाँटे जा रहे हैं। हम कुछ और समय ईमान- दारी और समझदारीसे जमकर काम करें तो चरखा अपना पक्का स्थान बना लेगा। ऐसी संस्थाओंका संगठन होने तक मैं 'यंग इंडिया' के उन पाठकोंसे जो यह मानते हैं कि चरखा अकालसे संरक्षणका साधन है, 'यंग इंडिया' के प्रबन्धकको अपना चन्दा भेजनेका अनुरोध करता हूँ। चन्देकी रकमोंकी प्राप्ति-सूचना दी जायेगी और उस रकम- का उपयोग अकाल-ग्रस्त क्षेत्र में सिर्फ चरखेके प्रचार और उसकी देखरेखकी उचित व्यवस्था करने के लिए किया जायेगा। जब कोई समिति बना ली जायेगी तो यह राशि समितिको सौंप दी जायेगी। कुछ भी हो चन्देका उपयोग उसी उद्देश्य के लिए किया जायेगा जिसका मैंने उल्लेख किया है।

[ अंग्रेजी से ]

यंग इंडिया, १६-३-१९२१

 
  1. १. देखिए खण्ड १७, पृष्ठ ४३१-३२; ४३९-४० ।