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२२२. स्वर्गीय डा० रासबिहारी घोष[१]

पिछले सोमवारको बंगालके सुप्रसिद्ध विधिवेत्ता डा० रासबिहारी घोषका देहान्त हो गया। उनकी आयु ७६ वर्षकी थी। उनका ज्ञान अगाध था और दानवीरता भी उतनी ही श्रेष्ठ थी। उनके भीतर असाधारण देशभक्तिकी भावना थी। वे अपने अनवरत उद्यमसे युवकोंको भी मात कर देते थे। उनके अंग्रेजीके ज्ञानकी भी अत्यधिक प्रशंसा की गई है। फिर भी यह तो कहना ही पड़ेगा कि वे एक बीते हुए युगके प्रतिनिधि थे। भारतके अत्यन्त जाने-माने विद्वान् विदेशी शासन और अराष्ट्रीय शिक्षण प्राप्त करने के कारण किस प्रकार देशके लिए किसी कामके नहीं रहते, डा० रासबिहारी घोष इसका एक ज्वलन्त उदाहरण हैं। उन्होंने अपनी युवावस्था यूरोपीय लेखकोंको भी मात करनेवाली अंग्रेजी शैलीको हस्तगत करने में बिता दी जब कि उन्हें तन-मनसे अपनी मातृभाषा सीखनेका प्रयत्न करना था। उन्होंने अपना अगाध पाण्डित्य पश्चिमी जीवन-दर्शनपर आधारित कानूनी मुद्दों तथा पाश्चात्य विचारोंकी व्याख्या तथा विश्लेषण में खपा दिया। कांग्रेसका सदस्य बनने के बाद उन्होंने केवल राष्ट्रीय परिषद् के उद्देश्य निश्चित किये। सूरतमें उन्होंने जो सिद्धान्त निर्धारित किया था, नागपुरकी राष्ट्रीय कांग्रेसको उसे इस वर्ष बदलना पड़ा। उन्होंने कलकत्ता विश्व- विद्यालयको दस लाख रुपये दिये; अलबत्ता इस शर्तपर कि इस रकमके व्याजसे केवल भारतीय प्रोफेसर ही रखा जाना चाहिए। उन्होंने भारतीय विश्वविद्यालयोंको भारी रकमें दान कीं। इस प्रकार उन्होंने अपनी योग्यता एक विदेशी भाषाके सम्वर्धनमें, अपनी प्रतिभा सरकारी अदालतोंकी सहायतामें और अपना धन ऐसी सरकारकी शिक्षण-पद्धतिके पोषणमें जिसमें उन्हें कतई विश्वास नहीं था तथा अपने व्यक्तित्वकी सारी शक्ति राष्ट्रीय उद्देश्यको सीमित करने में लगा दी। कुछ भी हो यदि ऐसा व्यक्ति स्वराज्यके युग में जन्म लेता तो उसका जीवन स्वर्णिम बन जाता और समस्त संसार उसकी सेवाओंका मूल्यांकन पाता। उन्होंने विधान परिषद् जो दो प्रस्ताव पास कराये उनसे स्पष्ट है कि भारतके लोगोंके हृदय में अपने देशके प्रति जो असीम सम्मान और स्नेह है उसे वह अच्छी तरह समझते थे । यदि उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा प्राप्त की होती तो वे भी इसी भावना और स्नेहसे प्रेरित हो देशकी उच्चतम सेवाएँ कर पाते। जनता उनको उतना नहीं समझ पाई है जितना कि सरकार; क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति में पलने के कारण वे अपने ही लोगोंके लिए अजनबी हो गये थे। पर उनका अनथक परिश्रम आज भी प्रत्येक व्यक्तिके लिए अनुकरणीय है।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, १६-३-१९२१

 
  1. १. डा० रास बिहारी घोष (१८४०-१९२१); अध्यक्ष, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, १९०७ व १९०८ ।