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२२३. पत्र : मगनलाल गांधीको

वर्धा जाते समय

बुधवार [ १६ मार्च, १९२१][१]

चि० मगनलाल,

एक बात तो यह कि दाभोलकरन ५०० रु० चरखे और स्वदेशी आन्दोलनके लिए और वसुमतिबेनने ५०० रुपये आश्रम के लिए दिये हैं। इन दोनों रकमोंके चेक रेवाशंकरभाईको दे दिये गये हैं।

डाक्टर मेहताने आश्रमको डेढ़ लाख रुपये दिये हैं। यह रकम दो वर्षोंमें जरूरतके मुताबिक ले लेनी है। रकम इमारत खाते दी गई है। इसमें से बीस हजार रुपये रेवा- शंकर भाईसे अभी ले सकते हो। जितना इमारती काम प्रारम्भ किया जा चुका है फिलहाल उसे ही पूरा कर लेना है। शेष स्थगित रखो। सेठ रुस्तमजीसे[२] मिला हुआ रुपया तथा हमारे पास पड़ी हुई अन्य सभी रकमोंको मैं इनसे अलग ही रखना जरूरी मानता हूँ | ये डेढ़ लाख रुपये अन्तरात्मासे की गई ईश्वर प्रार्थनाके उत्तरमें प्राप्त हुए हैं, ऐसा समझना | अच्छे चरखेकी कसौटीपर खरा उतरना कोई मामूली बात नहीं है। डेढ़ रुपयेकी कीमतवाला सूरतका चरखा देख लेना, मुझे वह बहुत ही पसन्द आया । उससे सूत तो बहुत काफी मात्रामें काता जा सकता है। उसका निर्माता कोई साधु पुरुष है। यह विद्यार्थी है और असहयोगमें शामिल हो गया है। मैंने उसे तुम्हारे पास जानेको लिखा है। उसे प्रोत्साहित करना । इस नमूनेका एक चरखा मैंने साथ रख लिया है। भाई शंकरलालका यह खयाल है कि हमारे नमूनके चरखे बनाने में लकड़ी बहुत ज्यादा लगती है। इस व्यक्तिने विश्वास दिलाया है कि उसके चरखमें लकड़ी कम लगेगी और वह चक्कर भी ज्यादा देगा। तुम्हारा खर्चेपर गहराईसे सोचना जरूरी है। हमें पाँच करोड़ घरोंमें चरखा प्रविष्ट कराना है। इस उद्देश्यकी पूर्तिके लिए खूब सस्ता और मजबूत रखा ईजाद होना जरूरी है। इस विषय में खूब सोचो और जो- जो नमूने ईजाद होते हैं उनके गुण दोषोंका अध्ययन करो। जो काम भाई शंकरलाल कर रहे हैं उसे समझ लेना बहुत जरूरी है। डेढ़ रुपयेवाले चरखेको खूब चलाकर उसकी रिपोर्ट भी तुम्हें तैयार करनी चाहिए।

आश्रमके विद्यार्थियोंपर विशेष ध्यान देने तथा उनसे अधिक और बढ़िया किस्म- का सुत कतवाना आवश्यक है। रुई धुननेकी क्रिया भी हमें अच्छी तरह सीख लेनी चाहिए। धुनना कितने समयमें सीखा जा सकता है, लिखना। हमारे बीच कताई- धुनाईके प्रत्येक अंगका विशेष ज्ञान रखनेवाले व्यक्ति होने चाहिए। बाहरी प्रवृत्तियोंको अपने-आप चलने देकर भीतरकी प्रवृत्तियोंको बढ़ाना और दूसरोंके किये गये कामोंपर

 
  1. १. गांधीजी बम्बईसे वर्धाके लिए इसी तारीखको रवाना हुए थे ।
  2. २. पारसी रुस्तमजी, जिन्होंने ४०,००० रुपर्थोकी मदद की थी। देखिए पृष्ठ १६०, पा० टि० २ ।