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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नजर रखना जरूरी हो गया है। कताईके सम्बन्ध में लक्ष्मीदासकी शिक्षा पद्धति तथा तुम्हारी शिक्षापद्धतिमें जो अन्तर हो उसे समझकर जो पद्धति शास्त्रीय उतरे उसे अपनाया जाना चाहिए।

अपने पत्रमें आश्रमकी अन्य उल्लेखनीय बातोंके बारेमें भी लिखना।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७९१) से ।

सौजन्य : राधावेन चौधरी

२२४. भाषण : बम्बईको सार्वजनिक सभामें

१६ मार्च, १९२१

श्री गांधी गुजरातीमें बोले। उन्होंने कहा, मैं आप लोगोंको देशकी वर्तमान स्थितिके बारेमें कुछ बताना चाहता हूँ। मैंने सारे देशका दौरा किया है और इस दौरेमें मुझे काफी अनुभव प्राप्त हुए हैं; किन्तु इतना समय नहीं है कि देशके विभिन्न भागों में जो कुछ मैंने देखा या जाना है, वह सब विस्तारसे आपको बता सकूं। मैं आपको केवल इतना ही बता सकता हूँ कि यदि आप असहयोगके प्रसारके लिए अपना कार्य उसी प्रकार शान्तिपूर्ण ढंगसे करते रहे, जिस प्रकार देशके सभी भागोंमें पिछले पाँच महीनोंसे करते रहे हैं, तो एक सालके अन्दर आपको स्वराज्य मिलना निश्चित है; और टर्कीकी अन्यायपूर्ण सन्धि भी सुधार ली जायेगी तथा पंजाबके साथ किये गये अन्यायोंका भी परिशोधन होगा।

पिछले पाँच महीनोंकी आपकी बड़ी उपलब्धि यह है कि अब रैयत समझ गई है। कि सरकारके दिये खिताबोंका कोई महत्व नहीं है; नौकरशाही द्वारा दी जानेवाली शिक्षा कोई शिक्षा नहीं है और विदेशी वस्तुओंका कोई मूल्य नहीं है। रैयत यह भी समझ गई है कि नौकरशाहीकी दी हुई कानूनी अदालतोंका उसके लिए कोई व्याव- हारिक उपयोग नहीं है ।

आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि न केवल रैयतने, वरन् अन्य वर्गोंने भी इस सत्यको पहचान लिया है। जो विद्यार्थी यहाँ मौजूद हैं, वे ईमानदारीसे ऐसा नहीं कह सकते कि वे सरकारी स्कूलोंमें पढ़ना सम्मानजनक समझते हैं, और यही हाल नौकर- शाहीकी अदालतों में वकालत करनेवाले वकीलोंका भी है। बंगाल, पंजाब तथा संयुक्त प्रान्तके अपने दौरोंमें मैं सैकड़ों वकीलों और विद्यार्थियोंसे मिला। वे लोग शर्म महसूस करते जान पड़े -- निश्चय ही अपने आपपर। वे उन संस्थाओंसे अपना नाता अबतक नहीं तोड़ पाये जिन्हें वे मात्र पाखण्ड मानते हैं। मैंने यह भी देखा कि धीरे-धीरे वे (विद्यार्थी और वकील) भी वर्तमान ब्रिटिश शिक्षाप्रणाली तथा ब्रिटिश अदालतोंकी ओरसे उदासीन होते जा रहे हैं। ऐसे आशाजनक संकेत मिले हैं कि आगामी सात