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भाषण : बम्बईकी सार्वजनिक सभामें

महीनों में इन वर्गोमें उक्त दिशामें विरक्तिकी भावना पूरी तरह दृढ़ हो जायेगी। यह एक स्वीकृत तथ्य रहा है कि भारत किसी भी अन्य वर्गके लोगोंसे वकीलोंकी अपेक्षा अधिक सेवाकी उम्मीद नहीं कर सकता । जहाँतक विद्यार्थियोंका सम्बन्ध है, उनके हृदय कोमल होते हैं और मस्तिष्क अपरिपक्व । इसीलिए वे अपने उन स्कूलों व कालेजोंको छोड़नेमें झिझक रहे हैं जिन्हें वे अन्तःकरणसे नापसन्द करते हैं। परन्तु मैं आपको बता दूं कि यदि आप यह जानते हुए भी कि अमुक चीज बुरी है, उसे नहीं छोड़ते तो इससे स्वराज्य प्राप्तिमें बाधा पड़ेगी।

आमजनता और अन्य वर्ग, सभी समझ गये हैं कि असहयोग आत्माकी शुद्धिका भी एक उपाय है। मैंने देशके उत्तरी भागमें जो-कुछ देखा, उससे मुझे बहुत ही खुशी हुई। मैंने देखा कि अधिकतर लोगोंके शरीरपर एक भी विदेशी वस्त्र नहीं था। जो विद्यार्थी स्कूल-कालेजोंसे बाहर आ गये हैं वे अनेक प्रकारसे राष्ट्रीय कार्य कर रहे हैं; और मेरी समझमें नहीं आता कि असहयोग करनेवाले विद्यार्थी अराजकतावादी कैसे बन सकते हैं, जैसी कि कुछ हल्कोंमें चर्चा है। मेरी समझमें अराजकतावादियों-जैसे कायर मनके लोग राष्ट्रकी पुकारपर इतने साहसके साथ कभी अपने स्कूलों और कालेजोंसे असहयोग नहीं कर सकते ।

आगे बोलते हुए श्री गांधीने कहा कि मुझे यह सुनकर दुःख हुआ कि श्री शास्त्री और श्री परांजपेका सार्वजनिक सभाओंमें अपमान किया गया। मेरी समझमें नहीं आता कि अपने उन देशभाइयोंका, जिनके विचार आपसे नहीं मिलते, अपमान करके आपको क्या मिल सकता है। मेरा मन बड़ा खिन्न हुआ, जब मैंने सुना कि बनारसमें उस संन्यासी, पंडित मदनमोहन मालवीयको भी अपने देशवासियोंसे उनकी देश-सेवा- ओंके अनुरूप व्यवहार नहीं मिला। आपको यह बात याद रखनी चाहिए कि आपको यह सब-कुछ सहना होगा; आपको किसीसे भी घृणा करनेका हक नहीं है। जिस तरह कोई व्यक्ति विचार न मिलनेपर भी अपनी पत्नी, पुत्र या बहनकी उपस्थितिको सहन करता है, उसी तरह आपको अपने देशभाइयोंके सभी दृष्टिकोणोंको सहन करना होगा। यदि आप नम्रतापूर्वक लोगोंकी विवेक-बुद्धिसे अपील करके किसीको असहयोगके रास्तेपर नहीं ला सकते तो आप बलप्रयोगसे वैसा कभी नहीं कर सकते। जबतक आप देशके सभी मतोंको सहन नहीं कर पाते तबतक आप कोई भी उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य करनेके योग्य नहीं हैं। आपका शस्त्र असहयोग है, जो किसीसे घृणा न करनेका उपदेश देता है। यदि मुझसे पूछा जाये तो मैं सबसे यही कहूँगा कि मैं चैम्सफोर्ड, डायर या ओ'डायरतक से घृणा नहीं करता। मैं तो केवल उनकी भयानक भूलें बता रहा हूँ। देशके सभी भागोंमें सरकारने अपना शिकंजा और भी कस दिया है, सख्त कर दिया है। शुरूमें सरकार आपके प्रति उदासीन थी, फिर वह मजाक उड़ाने लगी और बुरा-भला कहने लगी; इसके बाद वह दमनपर उतर आई। मैं तो सिर्फ यही कह सकता हूँ कि यह सब हमारे भलेके लिए है और यदि आप (असहयोगी) उसी प्रकार