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२२५. भाषण : बम्बईके नेशनल कालेजमें

१६ मार्च, १९२१

...उन्होंने कहा कि समस्त शिक्षाका सार दया है-- सबके प्रति दया; मित्रोंके प्रति, शत्रुओंके प्रति, मनुष्यों और पशुओंके प्रति । शिक्षाका मुख्य उद्देश्य चरित्रका निर्माण करना है जो ब्रह्मचर्यका कठोरतासे पालन करनेसे ही हो सकता है। श्री गांधीने इसके बाद छात्रोंको बताया कि उनके लिए हिन्दी सीखना और सूत कातना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि नवयुवकोंकी शिक्षा जिस तरीकेसे राष्ट्रीय स्कूलोंमें हो रही है उस तरीकेसे देशभरमें होती तो स्वराज्य प्राप्त करने में कोई कठिनाई न पड़ती।

[ अंग्रेजी से ]

बॉम्बे क्रॉनिकल, १७-३-१९२१

२२६. भेंट : 'डेली हैरॉल्डके' प्रतिनिधिसे

१६ मार्च, १९२१

[ भेंटकर्ता : ] आप विदेशोंमें प्रचार करनेके विरुद्ध क्यों है ?

गांधीजी : हमारा आन्दोलन सफलताके लिए मुख्य रूपसे प्रचारपर नहीं, बल्कि आन्तरिक सुधार और शक्तिपर निर्भर है। पहली बात तो यह है कि भारतसे बाहर चाहे एक भी व्यक्ति यह न जाने कि हम क्या कर रहे हैं, किन्तु यदि हम वास्तव में शक्ति अर्जित कर लें तो यह सरकार अवश्यमेव छिन्न-भिन्न हो जायेगी। दूसरी बात यह कि सरकार इतनी अच्छी तरह संगठित है कि जब उसके विरुद्ध किये जानेवाले किसी प्रचारका असर पड़ने लगता है तब वह उसे जारी नहीं रहने देती। तीसरी बात यह है कि हमारा प्रचार हमारे सीमित साधनोंपर निर्भर होगा; सरकारके पास विरोधी प्रचारके लिए असीम साधन हैं; फिर उसका प्रचार इतना सिद्धान्तहीन होता है कि उसे समयपर निरस्त करना असम्भव है। इसलिए मैं इस निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि हमें अपने आन्दोलनके प्रचार-प्रसार के लिए उसकी आन्तरिक सचाईपर ही निर्भर रहना चाहिए।

आजकल भारतमें जो दमन चल रहा है उसके बारेमें आपका क्या विचार है ?

दमनसे मालूम यह पड़ता है कि आन्दोलनका दबाव महसूस किया जा रहा है; इसलिए मैं इसका स्वागत करता हूँ। हम बम्बई में रहने वाले लोगोंकी किस्मत अच्छी है। इस प्रान्तमें दमनका स्वरूप उतना प्रचण्ड नहीं है जितना कि देशके अन्य भागों में । यदि जनता शान्त और अविचलित रहे तथा दमनका जवाब उसके विरुद्ध आन्दोलन करके नहीं, वरन् और अधिक त्याग और बलिदान करके दे तो दमन स्वयंमेव समाप्त हो

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